Weightlifter Punam Yadav Biography in hindi – पूनम यादव एक भारतीय महिला वेटलिफ्टर हैं, जिन्होंने वर्तमान में चल रहे कॉमनवेल्थ गेम्स में अच्छा प्रदर्शन करते हुए एक गोल्ड पदक अपने नाम कर लिया हैं आज सुर्खियों में हैं. पूनम यादव ने इससे पहले भी कई सारी प्रतियोगिताओ में भाग लिया हैं और वहां से मेडल भी जीते हैं। आज हम जानते हैं पूनम यादव के जीवन से जुड़ी कुछ बातों के बारे में-
नाम | पूनम यादव |
जन्म तिथि/स्थान | 25 जुलाई 1995/ वाराणसी |
कुल भाई बहन | 2 भाई, 4 बहनें |
नागरिकता | भारतीय |
पेशा | खिलाड़ी (वेट लिफ्टिंग) |
कुल मैडल | 1 (2018 कॉमनवेल्थ गेम्स) 1 (2014 कॉमनवेल्थ गेम्स) |
वेटलिफ्टर पूनम यादव का जन्म और शिक्षा – Birth and education of Weightlifter Poonam Yadav
पूनम यादव का जन्म 1995 में वाराणसी के दांदूपुर गांव में एक गरीब किसान के यहां हुआ था। पूनम के पिता का नाम कैलाश यादव और माता का नाम उर्मिला हैं। पूनम यादव 06 भाई बहन हैं. पूनम ने शिक्षा काशी विद्यापीठ वाराणसी उ0प्र0 से हासिल की. वर्तमान में पूनम यादव रेलवे में टीटीई की नौकरी कर रही हैं।
पूनम यादव का परिवार-Poonam Yadav’s family
पूनम यादव एक गरीब परिवार से नाता रखती हैं उनके 2 भाई और 4 बहनें हैं। दोनों भाई आशुतोष और अभिषेक हॉकी के नेशनल प्लेयर हैं। इसके अलावा पूनम की बहनें भी वेटलिफ्टंग में अपना कैरियर बना रहीं है।
पूनम यादव का कैरियर-Poonam Yadav career
पूनम यादव वाराणसी के एसएआई प्रशिक्षण केंद्र से वेटलिफ्टिंग की ट्रेनिंग ली हैं.
पूनम यादव द्वारा अब तक जीते गये अवार्ड- Awards
- पूनम यादव ने साल 2004 में एशियाई जूनियर चैम्पियनशिप में हिस्सेदारी ली थी और वहां से पहला अंतर्राष्ट्रीय पदक हासिल किया था।
- पूनम द्वारा 2014 में ग्लासगो में आयोजित हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में भी हिस्सा लिया था था जहां उन्होंने अपना पहला सीडब्ल्यूजी पदक जीता. पूनम ने तीसरा स्थान प्राप्त किया था जिस कारण उन्हे कास्य पदक मिला था. यह पदक उन्होने 63 किलो के वर्ग में जीता था।
- 2018 के कॉमनवेल्थ गेम्स में पूनम द्वारा स्नैच में पहले प्रयास में 95, दूसरे में 98 और तीसरी कोशिश में 100 वजन उठाया. क्लीन एंड जर्क में उनका सर्वश्रेष्ठ 122 किलोग्राम रहा. इस तरह कुल 222 किलोग्राम वजन उठाकर पूनम ने स्वर्ण पदक अपने नाम किया.
पूनम यादव के संघर्ष की कहानी-
पूनम की फैमिली वाराणसी के दांदुपुर में रहती है। मां उर्मिला के अनुसार उनकी बेटी ने काफी स्ट्रगल किया। हम वो पल नहीं भूल सकते, जब कई बार भूखे भी रहना पड़ा। पूनम के खेलने पर लोग ताने मारते थे, आज वही सलाम करते है। उर्मिला ने बताया कि 2014 के ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स में जब बेटी ने ब्रॉन्ज मेडल जीता तो हमारे पास इतने पैसे भी नहीं थे कि मिठाई बांट सके। तब पूनम के पापा कहीं से पैसों का इंतजाम करके मिठाई लाए। तब घर में खुशियां मनाई गई थीं।
पिता कैलाश यादव ने बताया कि ओलिम्पिक में कर्णम मल्लेश्वरी के गोल्ड मेडल जीतने के बाद से यही सपना था कि मेरी बेटी भी मेडल लाए। 2011 में पूनम ने प्रैक्टिस शुरू की। घर और खेतों का सारा कामकाज भी वही करती थी। गरीबी के चलते उसे पूरी डाइट भी नहीं मिल पाती थी। फिर अपने गुरु स्वामी अगड़ानंद जी ने मुझे स्थानीय समाजसेवी और नेता सतीश फौजी के पास भेजा। उन्होंने पूनम को खिलाड़ी बनाने में पूरी मदद की और करीब 20 हजार रुपए महीना खर्च दिया। ग्लासगो कॉमनवेल्थ में हिस्सा लेने के लिए हमारे पास पैसे नहीं थे। तब भैंसों को बेच दिया और करीबियों से 7 लाख रुपए उधार लिए। यहां ब्रॉन्ज मेडल लाकर उसने सबका सपना पूरा कर दिया।
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Hlo
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