Short Stories in Hindi – जादुई कड़ाई

Short Stories in Hindi – जादुई कड़ाई: एक बार एक गांव में एक मुंशी रहता था सोहनलाल .सोहनलाल की पत्नी का नाम आशा था.आशा की एक छोटी सी नन्ही सी ४ साल की बेटी थी. उसने प्यार से उसका नाम परी रखा था. आशा को पैसों और चीज़ों से लगाव न था. उसे छोटी -छोटी खुशिओं में खुश हो जाती थी.

सोहन लाल अपने  व्यापार की भड़ास अपनी बीवी पर उतारता था.आशा एक धैर्यशील औरत थी.सब कुछ सहन कर लेती थी. सोहनलाल को अपना व्यापार आगे बढ़ाने के लिए एक बेटे की ज़रूरत थी. लेकिन आशा कई कोशिशों के बाद भी बेटा न दे पायी.सोहनलाल आशा को समझता नहीं थी और चिड़चिड़ा हो गया था.आशा एक अच्छी गृहणी होने के साथ -साथ एक अच्छी माँ भी थी.

जादुई कढ़ाई

एक रोज सोहनलाल अपने किसी व्यापार के सिलसिले में शहर गया हुआ था.वह सात दिन बाद लौटा लेकिन आशा की ज़िन्दगी निराशा में परिवर्तित हो गयी.

सोहनलाल ने दूसरा विवाह कर लिया था.सोहनलाल को बेटा चाहिए था इसीलिए उसने ऐसा किया. उसकी पत्नी लाली स्वार्थी औरत थी .उसने शादी बड़े घर और रुपयों के लिए की थी.आशा रोने लगी.

लाली ने कहा -“अब मैं इस घर की मालकिन हूँ.”

सोहनलाल ने कहा -” लाली रहने दो और अपने कमरे में चलो “

आशा ने कहा -“आपने ऐसा क्यों किया ? परी आप के लिए सब कुछ कर सकती है. “

सोहनलाल ने कहा ” वह लड़का नहीं है .मेरे व्यापार की देखभाल और परिवार को आगे बढ़ाने के लिए मुझे एक लड़के की ज़रूरत है.”

सोहन लाल अगले दिन काम पर चला गया. आशा घर का खाना बना रही थी. लाली वहां आयी और बोली -” मेरे लिए फल काट दो”.

आशा ने कहा -” ठीक है”.

लाली ने कहा -” अब इस घर में जो मैं बोलूंगी वही होगा “

इस तरीके से एक महीने बीत गए. लाली को अब आशा और परी खटकने लगे थे.आशा और परी को वह दो वक़्त से ज़्यादा खाना नहीं देती थी.

 आशा ने कहा -” मैं ना खाऊ तो कोई बात नहीं पर परी को भूख लगती है “

लाली ने कहा -“अब तुम दोनों के दिन पुरे हुए .अब दोनों यहाँ से निकलो “

आशा ने कहा -” मैं कहाँ जाउंगी .मुझ पर रेहम करो .ऐसा मत करो.तुम जो  कहोगी वैसा करुँगी “

लाली ने उसकी एक न सुनी और उसे घर से बाहर निकाल दिया.

आशा रोते रोते परी को लेकर बाहर चली गयी.सोहनलाल जब शाम को आया तो आशा को न देखकर परेशान सा हो गया.

लाली ने कहा -” की मैंने आशा को रोकने की भरपूर कोशिश की लेकिन उसने एक न सुनी “

आशा  दर-दर भटकने लगी फिर जंगल के पास जमीन पर बैठकर रोने लगी.

तभी अचानक वैष्णो माता प्रकट हुयी और उन्होंने आवाज़ दी “आशा मत रो “

आशा ने कहा -” परी ने एक दिन से खाया नहीं है .उसे दूध की आवश्य्कता है “

भगवन ने कहा -” यह लो जादुई कड़ाई यह तुम्हारी भूख की परेशानी मिटा देगा “

आशा ने कहा -“कैसे”           

भगवन ने कहा -” तुम्हारे मन में जो भी खाने की इच्छा होगी यह बना देगा “

आशा ने कहा -“धन्य है प्रभु “

 भगवन ने कहा ” जब तुम्हे कोई काम मिल जाए और परी का पेट भर सको तो यही आना और कड़ाई वापस ले लेना.”

आशा ने कहा -“धन्य हो प्रभु “

यह कहकर भगवन अंतर्धान हो गए

आशा ने मन में दूध और दलिया के बारे में सोचा और कुछ ही देर में कड़ाई ने भोजन पड़ोस दिया.

ऐसे ही कुछ दिन बीतें …आशा को एक काम मिला उसे दिन के २० रुपये मिल जाते थे.

आशा को मजदूरी के २० रुपये हर दिन मिल जाते थे.उसी से वह अपना गुज़ारा करती थी.जादुई कड़ाई से उसे खाना मिल जाता था. परी और अपनी छोटी सी दुनिया में आशा खुश थी.

एक महीना बीत गया. एक दिन आशा मजदूरी के काम से निकली और उसके पति की ख़राब तबीयत के बारें में पता चला.

फिर एक दिन उसे पता चला कि उसके पति को व्यापर में भरी नुक्सान हुआ था. उसके पति कि तबयत ठीक नहीं . वह अपने आपको रोक न सकी. वह जल्द ही अपने पति के पास गयी .

वहां लाली न मिली .

सोहनलाल बिस्तर पर लेटा हुआ पानी मांग रहा था. आशा ने तुरंत उन्हें पानी पिलाया और पूछा -“यह क्या हो गया और लाली कहाँ है “

सोहनलाल ने कहा -” लाली सब कुछ छोड़कर चली गयी. जैसे ही मेरे व्यापार को नुक्सान पहुंचा वह तुम्हारे सारे गहने लेकर फरार हो गयी “

आशा ने कहा -” क्या कह रहे है आप ?”

सोहनलाल ने कहा -” मुझे माफ़ कर पाओगी …मेने तुम्हारे साथ जो कुछ किया वह पाप है.पुत्र पाने कि लालच में मैंने तुम्हे खो दिया.तुम्हारी कभी फ़िक्र न की…परी जैसी प्यारी बेटी की कदर नहीं कर पाया “

आशा ने कहा -” कोई बात नहीं …आपको अपनी गलती का एहसास है …मेरे लिए इतना काफी आये “

“आपने मेरे साथ जो किया उसका गम नहीं लेकिन परी का निरादर करके अपने बुरा किया.”

सोहनलाल को आशा ने माफ़ कर दिया . आशा ने कहा -” मैं आपको माफ़ किया लेकिन आगे भरोसा न कर पाऊँगी “

सोहनलाल की आशा ने सेवा की. वह कुछ दिनों में स्वस्थ हो गया. आशा ने जंगल जा कर जादू की कड़ाई वहां रख दी. भगवन ने आशा की बड़ी तारीफ़ की और कहा कि तुमने ज़िन्दगी के कठोर परिस्थितिओं में हार न मानी. अपने पति के इतने दुर्व्यवहार के बाद निस्वार्थ होकर उसकी सेवा की.

सोहनलाल पहले की तरह व्यापार के कर्ज चुकाने लगा …अब दोनों एक छोटे से घर में अपार खुशियों के साथ रहते थे.

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की जीवन के कठिन परिस्थितिओं में अपने अपनों का साथ नहीं छोड़ते और वहीं जीवन भर आपके दुःख -सुख में साथ निभाते है. जो व्यक्ति जीवन में छल  कपट का साथ निभाते है उनका अंत बहुत बुरा होता है.

लेखिका : रीमा बोस

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