कामदा एकादशी व्रत विधि कथा एवं महत्व

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Kamada Ekadashi Vrat Katha in Hindi – हिन्दु धर्म में एकादशी का व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी के रूप में जाना जाता हैं। कामदा एकादशी राम नवमी के बाद पहली एकादशी हैं।पद्म पुराण के अनुसार कामदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती हैं। कामदा एकादशी व्रत ( Kamada Ekadashi Vrat) के उपवास करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती हैं।

कामदा एकादशी व्रत – Kamada Ekadashi Vrat Dates

वर्ष 2018 में कामदा एकादशी व्रत 27 मार्च के दिन रखा जायेगा।

कामदा एकादशी व्रत विधि- Kamada Ekadashi Vrat Vidhi in Hindi

कामदा एकादशी व्रत के दिन प्रातः स्नानादि के पश्चात शुद्ध होकर साफ सुथरे कपड़े पहनकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु का फल, फूल, तिल, दूध, पंचामृत इत्यादि सामग्री के साथ पूजा करनी चाहिए। आज के दिन व्रती को रात में सोना नहीं चाहिए वल्कि भजन कीर्तन करके रात्रि जागरण करना चाहिए। इसके बाद अगले दिन यानि पारण(एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण करहते हैं) के दिन पुनः पूजन कर ब्राह्मण को भोजन आदि कराना चाहिए एवं दक्षिणा देकर व्राह्मण आदि को विदा करना चाहिए, इसके बाद स्वयं भोजन कर उपवास खोलना चाहिए।

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कामदा एकादशी का महत्व- Importance of Kamada Ekadashi Vrat in Hindi

कामदा एकादशी का व्रत रखने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती हैं। हिन्दु धर्म में ब्राह्मण की हत्या करना सबसे बड़ा पाप हैं। यह माना जाता है कि ब्राह्मण की हत्या का पाप भी कामदा एकादशी उपवास करने से मिट जाता हैं।

कामदा एकादशी व्रत कथा- Kamada Ekadashi Vrat Katha in Hindi

प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था. वहां पर अनेक ऐश्वर्यों से युक्त पुण्डरीक नाम का एक राजा राज्य करता था. भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गंधर्व वास करते थे. उनमें से एक जगह ललिता और ललित नाम के दो स्त्री-पुरुष अत्यंत वैभवशाली घर में निवास करते थे. उन दोनों में अत्यंत स्नेह था, यहां तक कि अलग-अलग हो जाने पर दोनों व्याकुल हो जाते थे.

एक समय पुण्डरीक की सभा में अन्य गंधर्वों सहित ललित भी गान कर रहा था. गाते-गाते उसको अपनी प्रिय ललिता का ध्यान आ गया और उसका स्वर भंग होने के कारण गाने का स्वरूप बिगड़ गया. ललित के मन के भाव जानकर कार्कोट नामक नाग ने पद भंग होने का कारण राजा से कह दिया. तब पुण्डरीक ने क्रोधपूर्वक कहा कि तू मेरे सामने गाता हुआ अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है. अत: तू कच्चा मांस और मनुष्यों को खाने वाला राक्षस बनकर अपने किए कर्म का फल भोग.

पुण्डरीक के श्राप से ललित उसी क्षण महाकाय विशाल राक्षस हो गया. उसका मुख अत्यंत भयंकर, नेत्र सूर्य-चंद्रमा की तरह प्रदीप्त तथा मुख से अग्नि निकलने लगी. उसकी नाक पर्वत की कंदरा के समान विशाल हो गई और गर्दन पर्वत के समान लगने लगी. सिर के बाल पर्वतों पर खड़े वृक्षों के समान लगने लगे तथा भुजाएं अत्यंत लंबी हो गईं. कुल मिलाकर उसका शरीर आठ योजन के विस्तार में हो गया. इस प्रकार राक्षस होकर वह अनेक प्रकार के दुःख भोगने लगा.

जब उसकी प्रियतमा ललिता को यह वृत्तांत मालूम हुआ तो उसे अत्यंत खेद हुआ और वह अपने पति के उद्धार का यत्न सोचने लगी. वह राक्षस अनेक प्रकार के घोर दुःख सहता हुआ घने वनों में रहने लगा. उसकी स्त्री उसके पीछे-पीछे जाती और विलाप करती रहती. एक बार ललिता अपने पति के पीछे घूमती-घूमती विन्ध्याचल पर्वत पर पहुंच गई, जहां पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था. ललिता शीघ्र ही श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई और वहां जाकर विनीत भाव से प्रार्थना करने लगी.

उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले कि हे सुभगे! तुम कौन हो और यहां किस लिए आई हो? ललिता बोली कि हे मुने! मेरा नाम ललिता है. मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से विशालकाय राक्षस हो गया है. इसका मुझको महान दुःख है. उसके उद्धार का कोई उपाय बतलाइए. श्रृंगी ऋषि बोले हे गंधर्व कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है. इसका व्रत करने से मनुष्य के सब कार्य सिद्ध होते हैं. यदि तू कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को दे तो वह शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा और राजा का श्राप भी अवश्यमेव शांत हो जाएगा.

मुनि के ऐसे वचन सुनकर ललिता ने चैत्र शुक्ल एकादशी आने पर उसका व्रत किया और द्वादशी को ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को देती हुई भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करने लगी- हे प्रभो! मैंने जो यह व्रत किया है इसका फल मेरे पतिदेव को प्राप्त हो जाए जिससे वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाए.

एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ. फिर अनेक सुंदर वस्त्राभूषणों से युक्त होकर ललिता के साथ विहार करने लगा. उसके पश्चात वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक को चले गए.

वशिष्ठ मुनि कहने लगे कि हे राजन्! इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पाप नाश हो जाते हैं तथा राक्षस आदि की योनि भी छूट जाती है. संसार में इसके बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है. इसकी कथा पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है.

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