Inspirational shayari by Ghalib
आज हम अपनी परेशानी-ए-ख़ातिर उन से
कहने जाते तो हैं पर देखिए क्या कहते हैं
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कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी ज़बानी मेरी
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ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है
हुए तुम दोस्त जिस के दुश्मन उस का आसमाँ क्यूँ हो
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कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से
जफ़ाएँ कर के अपनी याद शरमा जाए है मुझ से
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‘ग़ालिब’ बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे
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कहते हैं जीते हैं उम्मीद पे लोग
हम को जीने की भी उम्मीद नहीं
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ज़िंदगी में तो वो महफ़िल से उठा देते थे
देखूँ अब मर गए पर कौन उठाता है मुझे
Ghalib Poetry
की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं
होती आई है कि अच्छों को बुरा कहते हैं
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आज वाँ तेग़ ओ कफ़न बाँधे हुए जाता हूँ मैं
उज़्र* मेरे क़त्ल करने में वो अब लावेंगे क्या
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हाए उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत ‘ग़ालिब’
जिस की क़िस्मत में हो आशिक़ का गिरेबाँ होना
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आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था
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बना कर फ़क़ीरों का हम भेस ‘ग़ालिब’
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते हैं
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हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और
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आए है बे-कसी-ए-इश्क़ पे रोना ‘ग़ालिब’
किस के घर जाएगा सैलाब-ए-बला मेरे बाद
मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी
हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है
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बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह
जी में कहते हैं कि मुफ़्त आए तो माल अच्छा है
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हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है
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बुलबुल के कारोबार पे हैं ख़ंदा-हा-ए-गुल
कहते हैं जिस को इश्क़ ख़लल है दिमाग़ का
ख़ंदा-हा-ए-गुल = फूलों की हंसी
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