बेग़म अख्तरी जीवनी | Begum Akhtar Biography and Ghazal in Hindi

0
1518
begum-akhtar-Biography-in hindi

Begum akhtar Biography in Hindi – अख्तर बाई फैजाबाद, जिसे बेगम अख्तर के नाम से भी जाना जाता है, गजल, दादरा और हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के ठुमरी शैलियों के एक प्रसिद्ध भारतीय गायक थे।

उन्होंने मुखर संगीत के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्त किया, और उन्हें सरकार द्वारा पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। भारत की। उन्हें “मल्लिका-ए-गझल” का खिताब दिया गया था।

बेग़म अख्तर का जीवन-Begum akhtar Biography in Hindi

बेगम अख्तर का जन्म 7 अक्टूबर 1914 को बदा दरवाजा, टाउन भद्रसा, भरतकुंड, फैजाबाद जिला, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता, असगर हुसैन, एक युवा वकील जो अपनी मां मुशररी के साथ प्यार में पड़ गए थे और अपनी दूसरी पत्नी बना चुके थे, बाद में उन्हें और उनकी जुड़वां बेटियां जोहरा और बिब्बी का त्याग कर दिया।

बेग़म अख्तर गजल, ठुमरी और दादरा गायन शैली की बेहद लोकप्रिय गायिका थीं। उन्होंने ‘वो जो हममें तुममें क़रार था, तुम्हें याद हो के न याद हो’, ‘ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया’, ‘मेरे हमनफस, मेरे हमनवा, मुझे दोस्त बन के दवा न दे’, जैसी कई दिल को छू लेने वाली गजलें गायी हैं।

बेगम अख्तर ने बतौर अभिनेत्री भी कुछ फिल्मों में काम किया था। उन्होंने ‘एक दिन का बादशाह’ से फिल्मों में अपने अभिनय करियर की शुरूआत की लेकिन तब अभिनेत्री के रुप में कुछ खास पहचान नहीं बना पाई।

बाद में उन्होंने महबूब खान और सत्यजीत रे जैसे फिल्कारों की फिल्म में भी अभिनय किया लेकिन गायन का सिलसिला भी साथ-साथ चलता रहा। 1940 और 50 के दशक में गायन में उनकी लोकप्रियता चरम पर थी। तभी उन्होंने इश्तिआक अहमद अब्बासी जे पेशे से वकील थे, से निकाह कर लिया। इसके बाद वह करीब 5 साल तक संगीत की दुनिया से दूर रही. इसके बाद वह बीमार रहने लगी तो डाक्टरों ने बताया कि उनकी बीमारी की एक ही वजह है कि वो अपने पहले प्यार, यानी कि गायकी से दूर हैं। उनके शौहर की शह पर 1949 में वो एक बार फिर अपने पहले प्यार की तरफ़ लौट पड़ीं और ऑल इंडिया रेडियो की लखनऊ शाखा से जुड़ गयीं और मरते दम तक जुड़ी रहीं।

बेगम अख़्तर ने 1953 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘दानापानी’ के गीत ‘ऐ इश्क मुझे और कुछ याद नही’ और 1954 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘एहसान’ के गीत ‘हमें दिल में बसा भी लो’ गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया

 वर्ष 1958 में सत्यजीत राय द्वारा निर्मित फ़िल्म ‘जलसा घर’ बेगम अख़्तर के सिने कैरियर की अंतिम फ़िल्म साबित हुई। इस फ़िल्म में उन्होंने एक गायिका की भूमिका निभाकर उसे जीवंत कर दिया था। इस दौरान वह रंगमंच से भी जुड़ी रही और अभिनय करती रही।

निधन –

अपनी जादुई आवाज से श्रोताओं को मदमग्न करने वाली यह महान् गायिका का देहांत 50 वर्ष की उम्र में 30 अक्तूबर 1974 को हो गया था। बेगम अख़्तर की तमन्ना आखिरी समय तक गाते रहने की थी जो पूरी भी हुई। मृत्यु से आठ दिन पहले उन्होंने मशहूर शायर कैफ़ी आज़मी की यह ग़ज़ल रिकार्ड की थी-

बेग़म अख्तर की 5 दिल को छू जाने वाली ग़जल ओर lyrics

बेगम अख्तर की 5 बेहतरीन ग़ज़ल सुनिए और साथ में ग़ज़ल के बोल (Lyrics) का भी आनंद उठाइए. बेमिसाल गायिका बेगम अख्तर की आवाज़ और बेहतरीन अंदाज दिल को छू जाता है.

1-शायर- मोमन खान(मोमिन)

वो जो हम में तुम में क़रार था, तुम्हें याद हो के न याद हो-2
वही यानी वादा-2 निबाह का, तुम्हें याद हो के न याद हो

वो नये गिले वोह शिक़ायतें, वो मज़े मज़े की हिक़ायतें
वो हर एक बात पे रूठना, तुम्हें याद हो के न याद हो

कभी हम में तुम में भी चाह थी, कभी हमसे तुमसे भी राह थी
कभी हम भी तुम भी थे आशना, तुम्हें याद हो के न याद हो

वो जो लुत्फ़ मुझसे थे पेशतर, वो क़रम कि था मेरे हाल पर
मुझे सब है याद ज़र्रा-ज़र्रा, तुम्हें याद हो के न याद हो

कोई बात ऐसी अगर हुई, जो तुम्हारी जी को बुरी लगी
तो बयाँ से पहले ही बोलना, तुम्हें याद हो के न याद हो..

जिसे आप गिनते थे आशना, जिसे आप कहते थे बावफ़ा
मैं वही हूँ मोमिन’-ए-मुब्तिला, तुम्हें याद हो के न याद हो..

2-  (दादरा)

हमरी अटरिया पे आओ सवारियां, देखा देखी बलम होई जाए-2,हमरी अटरिया…

तस्सवुर में चले आते हो कुछ बातें भी होती हैं, शबे फुरकत भी होती हैं मुलाकातें भी होती हैं,

प्रेम की भिक्शा मांगे भिखारन, लाज हमारी राखियो साजन। 2

आओ सजन हमारे द्वारे, सारा झगड़ा खत्म होइ जाए 2

हमरी अटरिया-2

तुम्हरी याद आंसू बन के आई, चश्मे वीरान में 2, ज़हे किस्मत के वीरानों में बरसातें भी होती है

हमारी अटरिया पे 2

3- शायर – शकील बदायूंनी

 मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यूँ आज तेरे नाम पे रोना आया

यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती थी
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया

कभी तक़दीर का मातम कभी दुनिया का गिला
मंज़िल-ए-इश्क़ में हर गाम पे रोना आया

जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का ‘शकील
मुझको अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया

4- शायर – शकील बदायूंनी

मेरे हमनफ़स, मेरे हमनवा, मुझे दोस्त बन के दवा न दे
मैं हूँ दर्द-ए-इश्क़ से जाँ-ब-लब, मुझे ज़िंदगी की दुआ न दे

मेरे दाग़-ए-दिल से है रौशनी, इसी रौशनी से है ज़िंदगी
मुझे डर है ऐ मेरे चाराग़र, ये चराग़ तू ही बुझा न दे

मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर, तेरा क्या भरोसा है चाराग़र
ये तेरी नवाज़िश-ए-मुक़्तसर, मेरा दर्द और बढ़ा न दे

मेरा ज़ुल्म इतना बुलन्द है के पराये शोलों का डर नहीं
मुझे ख़ौफ़ आतिश-ए-गुल से है, ये कहीं चमन को जला न दे

वो उठे हैं लेके हुम-ओ-सुबू, अरे ओ  शक़ीलकहाँ है तू
तेरा जाम लेने को बज़्म में कोइ और हाथ बढ़ा न दे

5- शायर : मिर्ज़ा ग़ालिब

ये ना थी हमारी क़िस्मत के विसालए-यार होता, अगर और जीते रहते, यही इंतज़ार होता

तेरे वादे पर जिये हम, तो ये जान झूठ जाना, के खुशी से मर न जाते, अगर ऐतबार होता

तेरी नाज़ुकी से जाना के बंधा था अहद बूदा, कभी तू न तोड़ सकता, अगर उसतवार होता

कोई मेरे दिल से पूछे, तेरे तीर-ए-नीम कश को, ये खलिश कहाँ से होती, जो जिगर के पार होता

ये कहाँ की दोस्ती है के बने हैं दोस्त नासे, कोई चारा साज़ होता, कोई गम गुसार होता

रगए-संग से टपकता, वो लहू के फिर न थमता, जिसे ग़म समझ रहे हो, ये अगर शरार होता

ग़म अगरचे जाँ गुसल है, पर कहाँ बचैं के दिल है, ग़म-ए-इश्क़ गर न होता, गम-ए-रोज़गार होता

कहूँ किस से मैं के किया है, शब-ए-गम बुरी बला है, मुझे किया बुरा था मरण अगर ऐक बार होता

हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्यूँ न गर्क़-ए-दरया, न कभी जनाज़ा उठता, न कहीं मज़ार होता

उसे कौन देख सकता के, यगाना हे वो यकता, जो दुई की बू भी होती, तो कहीं दो चार होता

ये मसाएल-ए-तसव्वुफ़, ये तेरा बेअन, ग़ालिब, तुझे हम वाली समझते, जो न बादह खार होता

Disclaimer: Please be aware that the content provided here is for general informational purposes. All information on the Site is provided in good faith, however we make no representation or warranty of any kind, express or implied, regarding the accuracy, adequacy, validity, reliability, availability or completeness of any information on the Site.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here