डॉ. भीमराव आंबेडकर ( बाबासाहेब) का इतिहास एवं जीवन दर्शन

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Ambedkar biography in hindi – डॉ0 भीमराव आंबेडकर जिनका पूरा नाम डॉ0 भीमराव रामजी अम्बेडकर था, इन्हे बाबासाहेब के नाम से भी जाना जाता हैं. वह एक समाज सुधारक, न्यायविद् और कुशल राजनीतिज्ञ थे। उनके द्वारा छुआ-छूत और जातिवाद जैसी सामाजिक बुराईयों को दूर करने में उनके द्वारा किया गया योगदान उल्लेखनीय हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन दलित और पिछड़ों के अधिकारों को दिलाने में बिता दिया.

डॉ0 बी0आर0 अम्बेडकर को जवाहरलाल नेहरू जी के मंत्रिमंडल में भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था। बाबा साहेब को मरणोपरांत 1990 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

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डॉ भीमराव अम्बेडकर का जीवन परिचय ( B R AMbedkar Jayanti Biography in hindi)

पूरा नामडॉ0 भीमराव रामजी आंबेडकर
अन्य नामबाबासाहेब
जन्म/स्थान14 अप्रैल 1891, महू, इंदौर मध्यप्रदेश
मृत्यु06 दिसम्बर 1956 दिल्ली, भारत
राष्ट्रीयताभारतीय
माता/पिताभिमबाई मुर्बद्कर/ रामजी मालोजी सकपाल
विवाहदो विवाह पहला रमाबाई (1906), दूसरा सविता अम्बेडकर (1948)
बच्चेभैया साहेब अम्बेडकर
शिक्षाएम0ए0(अर्थशास्त्र), एमएससी, डी0एससी, एलएलडी, डीलिट आदि (कुल 32 डिग्रियां हासिल की)
उपलब्धियांस्वतंत्र भारत के संविधान की रचना करने के लिए संविधान सभा द्वारा गठित ड्राफ्टिंग समिति के अध्यक्ष चुने गए, भारत के प्रथम कानून मंत्री, 1990 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया

Ambedkar Jayanti 2018 : Dr Bhimrao Ambedkar History and Biography in hindi डॉ. भीमराव आंबेडकर ( बाबासाहेब) का इतिहास एवं जीवन दर्शन

बाबासाहेब का प्रारम्भिक जीवन- Early Life of BABASAHEB

डॉ भीमराव अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 में महू सेना छावनी, मध्यप्रदेश में हुआ था। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल था जोकि भारतीय सेना में सूबेदार थे और माता का नाम भीमाबाई था. वह महार जाति से ताल्लुक रखते थे जोकि अछूत कहे जाते थे और उनके साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था।

डॉ0 भीमराव अम्बेडकर अपने माता पिता की चौदहवी संतान थे। सन् 1894 में जब बाबासाहेब के पिता नौकरी से सेवानिवृत हो गये और वह जाकर सतारा में बस गये जहां कुछ समय बाद अम्बेडकर की माता की मृत्यु हो गई थी. इन कठिन परिस्थितियों में भीमराव अम्बेडकर व उनके दो भाई बलराम, आनंदराव एवं दो बहनें मंजुला और तुलासा ही जीवित बच पाये. इसके पश्चात उनके पिता नें 1894 में दूसरी शादी कर ली जिसके पश्चात वह मुंबई जाकर बस गये.

भीमराव ने बचपन से ही जातिगत भेदभाव को सहन किया यहां तक कि स्कूल में उन्हे ऊंची जाति के बच्चों द्वारा उन्हे पास न बैठने यहां तक अध्यापक द्वारा उनकी कांपिया न जांचने जैसी परिस्थितियों को सहन किया था। चूंकि अम्बेडकर जी के पिता और दादा ब्रिटिश सेना में कार्यरत थे तो उन दिनों सरकार द्वारा यह सुनिश्चित किया गया कि सेना के समस्त कर्मचारी और उनके बच्चे शिक्षित किये जायें और इसके लिए एक विशेष विद्यालय खोला गया. इस विद्यालय के कारण ही भीमराव को अच्छी शिक्षा प्राप्त हो सकी अन्यथा जातिगत भेदभाव के कारण उन्हे शिक्षा से वंचित ही रहना पड़ सकता था।

इसके बाद उन्हेंने बड़ौदा नरेश सयाजी राव गायकवाड़ से फेलोशिप प्राप्त कर मुबई विश्वविद्याल से स्नातक की परीक्षा उत्तीरण की।

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बी0ए0 उत्तीर्ण करने के बाद एम0ए0 के की पढ़ाई हेतु बडौदा नरेश सयाजी गायकवाड़ की पुनः फेलोशिप पाकर वह अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में दाखिल हुए इसके बाद 1915 में उऩ्होंन स्नातकोत्तर की उपाधि की परीक्षा उत्तीर्ण की. इसके बाद उन्हेंने अपना शोध “प्राचीन भारत का वाणिज्य” लिखा था।

भीमराव अम्बेडकर द्वारा 1916 में कोलंबिया विश्वविद्यालच अमेरिका से ही पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की जिसमें उनके शोध का विषय था “ ब्रिटिश भारत में प्रातीय वित्त का विकेन्द्रीकरण”। फालोशिप समाप्त होने के उपरांत उन्हें भारत वापस ब्रिटेन होते हुए आ रहे थे. तभी उन्होंने ब्रिटेन के लंदन स्कूल ऑफ अकोनामिक्स एण्ड पॉलिटिक्स सांस में एम.एससी. और डी.एस.सी एवं ग्रेज इन नामक विधि संस्थान में बार-एट-लॉ की उपाधि हेतु पंजीकरण कराया और भारत वापस लौट आये।

भारत लौटने के पश्चात बड़ौदा नरेश के द्वरा पढ़ाई के लिए दी गयी छात्रवृत्ति की शर्त के मुताबिक उन्होंने बड़ौदा नरेश के दरबार में सैनिक अधिकारी एवं वित्तीय सलाहकार का दायित्व स्वीकार किया. इसी बीच जब उऩ्होंने रहने के लिए किराये पर कमरे की तलाश की तो उन्हें पूरे शहर में किसी ने कमरा नहीं दिया जिसके पश्चात कुछ हफ्तों के बाद वह वापस मुंबई लौट आये। इसके बाद उन्होने परेल में डबक चाल और श्रमिक कॉलोनी में रहकर अपनी अधूरी पढ़ाई को पूरी करने के लिए पार्ट टाइम आध्यापन कार्य व वकालत करके अपनी पत्नी रमाबाई के साथ जीवन यापन किया।

इसके पश्चात डॉ0 अम्बेडकर ने सन् 1919 में राजनीतिक सुधार हेतु गठित साउथबरो आयोग के समक्ष राजनीति में दलित प्रतिनिधित्व के पक्ष में साक्ष्य दी। इसके पश्चात उन्होनें निर्धन, अशिक्षित एवं दलित समाज के लोगों को जागरूक बनाने के लए मूकनायक और बहिष्कृत भारत साप्ताहिक पत्रिकाएं संपादित की. इसके पश्चात वह अपनी अधूरी पढ़ाई के लिए लंदन और जर्मनी जाकर वहां से एम.एससी., डी.एतती., और बैरिस्टर की उपाधियां प्राप्त की.

इसके बाद कोलंबिया विश्वविद्यालय ने बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर को एल.एलडी और उस्मानिया विश्वविद्यालय ने डी. लिट की मानद उपाधियों से सम्मानित किया था। इस प्रकार देखा जाये तो बाबासाहेब ने सामाजिक बुराइंयों से जूझते हुए बीए, एमए, एमएससी, पीएचडी, बैरिस्टर, डीएससी, डीलिट आदि की कुल 32 डिग्रियां हांसिल की. इस प्रकार डॉ अम्बेडकर वैश्विक युवाओं के लिए प्रेरणा बन गये.

डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा राष्ट्र निर्माण  में दिये गये महत्वपूर्ण योगदान

बाबासाहेब डॉ0 बी.आर.अंबेडकर ने अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में देश को सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, शैक्षणिक, ऐतिसाहसिक, सांस्कृतिक, औद्योगिक आदि विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावी कार्य करते हुए राष्ट्र निर्माण में अतुल्यनीय योगदान दिया.

बाबा साहेब द्वारा दलितों एवं दलित आदिवासियों को मंदिरों में प्रवेश, जात-पात, ऊंच-नीच, छुआ-छूत जैसी सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने के लिए मनुस्मृति दहन (1927), महाड सत्याग्रह (1928), नाशिक सत्याग्रह (1930), येवला की गर्जना आदि आंदोलन चलाये।

कमजोर वर्ग के छात्रों को छात्रावासों, रात्रि स्कूलों, ग्रंथालयों एवं शैक्षिक गतिविधियों के जरिये अपने दलित वर्ग शिक्षा समाज (स्था0 1924) के जरिये अध्ययन करने एवं आय अर्जित करने के लिए उन्हें सक्षम बनाया।

पीपुल्स एजुकेशन सोसायटी के जरिये उन्होंने 1945 में मुंबई में सिद्धार्थ महाविद्यालय तथा औरंगाबाद में मिलिन्द महाविद्यालय की स्थापना की.

उन्होंने 14 अक्टूबर 1956 को 5 लाख लोगों के साथ नागपुर में बौद्ध धर्म की दीक्षा ली एवं भारत में बौद्ध धर्म की पुनर्स्थापना कर अपने अंतिम ग्रंथ “द बुद्धा एण्ड हिज धम्मा” के द्वारा निरंतर वृद्धि का मार्ग प्रश्स्त किया।

डॉ0 बी0आर0 अंबेडकर का संविधान निर्माण में योगदान

जात पांत तोडक मंडल (1937) लाहौर के अधिवेशन हेतु तैयार अपने अभिभाषण को “जातिभेद निर्मूलन” नामक उनके ग्रंथ ने भारतीय समाज को धर्मग्रंथों में व्याप्त मिथ्य, अंधविश्वास एवं अंधश्रद्धा से मुक्ति दिलाने का कार्य किया.

वह हिन्दु विधेयक संहिता के जरिये महिलाओं को तलाक, सम्पत्ति में उत्तराधिकार आदि का प्रावधान कर उसके कार्यान्वयन के लिए जीवन पर्यंत संघर्ष करते रहे।

संविधान तथा राष्ट्र निर्माण

उन्होंने समता, समानता, बन्धुता एवं मानवता आधारित भारतीय संविधान को 02 वर्ष 11 महीने और 17 दिन के कठिन परिश्रम से तैयार कर 26 नवंबर 1949 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को सौंप कर देश के समस्त नागरिकों को राष्ट्रीय एकता, अखंडता और व्यक्ति की गरिमा की जीवन पद्धति से भारतीय संस्कृति को अभिभूत किया।

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