स्वतंत्रता सेनानी शिवराम राजगुरू की जीवन परिचय

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Freedom Fighter Shivram Rajguru Biography in Hindi – भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू तीन ऐसे व्यक्ति थें जिनके बारे में भारत के ज्यादातर सभी व्यक्ति थोड़ा बहुत जानते होंगे। यह तीनों इतने घनिष्ट मित्र थे कि इन्होंने ठान लिया था या तो जो हमारा लक्ष्य है उसे साथ मिलकर हासिल करेंगे या साथ मर जायेंगे। देश की आजादी के लिए न जाने कितने लोगों ने अपने एक तरीका अपना कर गुलामी की बेड़ियों से आजाद की ठानी थी जिनमें से कई देशभक्तों नें इस रास्ते पर चलते हुए शहादत प्राप्त की। उन्ही देशभक्तों में से एक थे, शिवराम हरी राजगुरू।

उन्होने बहुत छोटी उम्र में अपने वतन के लिए प्राणों की आहूति दे दी, हमारा देश ऐसे वीर जवानों की कुर्वानी को आज भी याद करता हैं। आज हम आपको बताने जा रहे है कि राजगुरू जी नें हमारे देश के लिए क्या-क्या त्याग किये थे और कैसे वह एक क्रांतिकारी बन गये थे।

पूरा नामशिवराम हिर राजुगुरू
उप नाम रघुनाथ, एम. महाराष्ट्र
जन्म/स्थान24 अगस्त 1908/ पुणे महाराष्ट्र ब्रिटिश भारत
मृत्यु/स्थान23 मार्च, 1931 / लाहौर, ब्रिटिश भारत (वर्तमान पंजाब, पाकिस्तान)
पिता का नामहरि नारायण
माता का नामपार्वती बाई
भाई/बहनेंदिनकर / चन्द्रभागा, वारिणी एवं गोदावरी
जातिब्राह्मण

राजगुरू जी का प्रारम्भिक जीवन- Early life of Rajguru in Hindi

शिवराम हिरि राजगुरू का जन्म सन् 1908 में गांव खेड़ा, पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था। राजगुरू के पिता का नाम हरि नारायण था जिन्होंने दो शादियां की थी। जिसमें पहली पत्नी से 6 बच्चे थे और दूसरी शादी पार्वती जी से की थी जिनसे 5 बच्चे थे राजगुरू इन्ही में से पांचवी संतान थी। राजगुरू के पिता का देहांत केवल 06 वर्ष की आयु में हो गया था जिसके बाद उनका पालन पोषण उनकी मां और बड़े भाई ने किया। राजगुरू का बचपन खेड़ा गांव में ही व्यतीत हुआ।

राजगुरू की शिक्षा की बात की जाये तो उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव से ही एक मराठी स्कूल में प्राप्त की, इसके बाद वह वाराणसी चले गये जहां उन्होंने विद्यानयन और संस्कृत की बढ़ाई की थी। उनकी बुद्धि बहुत तेज थी केवल 15 वर्ष की आयु में उन्हें हिन्दू धर्म ग्रंथों के बारे में बहुत ही अच्छा ज्ञान हो गया था। इतना ही नहीं राजगुरू द्वारा सिद्धान्तकौमुदी(संस्कृत की शब्द शास्त्र) को बहुत ही कम वक्त में कंठस्थ कर लिया था।

राजगुरू का क्रांतिकारी बनने की यात्रा-The journey of Rajguru to become a revolutionary

जब वह वाराणसी में शिक्षारत थे उसी समय उनकी मुलाकात हमारे देश की आजादी के लिए लड़ रहे कुछ क्रांतिकारियों से हुई थी. इन क्रांतिकारियों से प्रेरित होकर राजगुरू ने भी देश को आजाद कराने की इस लड़ाई में सम्मिलित हो गये। राजगुरू सन 1924 में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन जो कि एक क्रांतिकारी संगठन था उसमें सम्मिलित हो गये थे. इस संगठन को चंन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदे थापर और कई अन्य क्रांतिकारियों द्वारा बनाया गया था, जिसका लक्ष्य केवल देश को आजाद कराना था।

इस संगठन को मजबूत करने के लिए राजगुरू द्वारा अलग-अलग स्थानों पर जाकर वहां को लोगों को संगठन से जुड़ने के लिए प्रेरित किया. इसी बीच राजगुरू , भगत सिहं के बहुत अच्छे मित्र बन गये। इसके बाद इन्होंने साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ की आंदोलन किये थे।

साल 1928 में ब्रिटिश इंडिया ने भारत में राजनीतिक सुधारों के मुद्दों पर नजर रखने के लिए ‘साइमन कमीशन’ नियुक्त किया था. इस आयोग में एक भी भारतीय नेता शामिल न किये जाने को लोकर नाराज भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं ने इस कमीशन का बहिष्कार किया था इसकी को लेकर अंग्रेजों द्वारा लाठी चार्ज करवा दी गयी थी जिसमें लाला लाजपत राय जी का देहांत हो गया था। लाला लाजपत राय की मृत्यु के बाद चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह व राजगुरू ने साथ मिलकर इस हत्या का बदला लेने का प्रण लिया था। जिसे उन्होंने पुलिस अधीक्षक जेम्स ए स्कॉट को मारने का लिया था क्यों कि इसी के द्वारा लाठी चार्ज करने का आदेश दिया गया था जिसमें राय की मृत्यु हो गयी थी।

जेम्स ए स्कॉट को खतम करने के लिए राजगुरू व उनके साथियों ने एक रणनीति बनाई. चूंकि राजगुरू व उनके साथी स्कॉट को पहचानते नहीं थे, पहचान के लिए जयगोपल को लगाया था. इस प्लान को अंजाम देने के लिए 17 दिसंबर 1928 का दिन चुना गया था। सी दिन जब राजगुरू और भगत सिंह लाहौर के जिला पुलिस मुख्यालय के बाहर स्कॉट के आने का इंतजार कर रहे थी, तभी जय गोपाल द्वारा एक पुलिस अधिकारी तरफ इशारा करते हुए कहा कि यह स्कॉट हैं जिस पर उन्होने गोलियां दाग कर उस पुलिस अफसर की हत्या कर दी लेकिन वह स्टॉक न होकर दूसरा पुलिस अफसर जॉन पी सॉन्डर्स थे जो एस सहायक आयुक्त थे। इसके बाद अंग्रेजो द्वारा सम्पूर्ण भारत में उनके कातिलों को पकड़ने का अभियान चलाया . सूत्रों के मुताबिक अंग्रेजों को पता था कि इस हत्या के पीछे भगत सिंह का हाथ है जिस पर वह उन्हे पकड़ने के लिए और तेजी से लग गये। इसके बाद भगत सिंह व राजगुरू ने अंग्रेजों से बचने के लिए लिए लाहौर छोड़ने का फैसला लिया था। जिसके बाद वह वहां से लखनऊ होते हुए बनारस के लिए निकल गये थे।

इस घटना के उपरांत राजगुरू कुछ समय उत्तर प्रदेश में बिताने के बाद नागपुर चले गये थे, यहां राजगुरू द्वारा आरएसएस के एक कार्यकर्ता के यहां आश्रय लिया था। राजगुरू जब 30 सितंम्बर 1929 को नागपुर से पुणे जा रहे थे तभी अंग्रेजों द्वारा उन्हे पकड़ लिया था। इसके अलावा भगत सिंह और सुखदेव को भी गिरफ्तार कर लिया गया था।

राजगुरू की मौत-Rajguru’s death in Hindi

ब्रिटिश इंडिया के अफसर सॉन्डर्स की हत्या में दोषी पाये जाने पर राजगुरू को सन् 1931 को फांसी दे दी गया थी। राजगुरू के साथ सुखदेव एवं भगत सिंह को भी इनके साथ फांसी दे दी गयी थी। इस प्रकार हमारे देश की आजादी के लिए लड़ रहे तीन क्रांतिकारियों को खो दिया था। जब राजगुरू को फांसी दी गयी थी तब उनकी आयु महज 22 साल थी।

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