शहीद भगत सिंह जी की जीवनी

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bhagat singh biography – भगत सिंह को भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारियों में से एक थे। जिस साहस के साथ उन्होंने शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया उसे भुलाया नहीं जा सकता। केवल 23 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने देश के लिए प्राण न्यौछावर कर दिये. भगत सिंह का जन्म एक सिख परिवार में हुआ था और छोटी सी उम्र से ही उन्होंने अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर किये जा रहे अत्याचार को देखा था जिस कारण कम उम्र से ही उनके मन में देश के लिए कुछ कर गुजरने का विचार आ गया था। उनका मानना था कि हमारे देश के नौजवान भारत को आजाद कराने में अहम भूमिका निभा सकते हैं, इसी कारण उन्होंने नौजवानों को एक नई राह दिखाने की कोशिश की. जब कभी हम हमारे देश की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले एवं अपने प्राणों को न्यौछावर करने वाले शहीदों के बारे में सोचते हैं तब हमारे जहन में सबसे पहले भगत सिंह का नाम आता है। भगत सिंह हमारे देश के नौजवानों के लिए एक प्रेरणास्रोत है।

शहीद भगत सिंह जीवनी- Bhagat Singh in Hindi

पूरा नामसरदार भगतसिंह किशंसिंग
जन्म27 सितम्बर 1907
जन्म स्थानगांव बावली पंजाब(जि0 लायलपुर वर्तमान पाकिस्तान में)
मृत्यु23 मार्च 1931 लाहौर (वर्तमान पाकिस्तान)
पिताकिशनसिंह
माताविद्यावती
शिक्षाडी.ए.वी. हाई स्कूल लाहौर, नेशनल कॉलेज लाहौर
किताबमैं नास्तिक क्यों हूं

भगत सिंह का जन्म *27 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलाँ  है जो पंजाब, भारत में है। उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था। भगत सिंह का परिवार एक आर्य-समाजी सिख परिवार था।  उन्होंने बचपन से ही अपने परिवार में देश भक्ति देखी थी।  उनके चाचा सरदार अजित सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे। जिन्होंने भारतीय देशभक्त संघ की स्थापना की थी। उनके एक मित्र सैयद हैदर रजा ने उनका अच्छा समर्थन किया और चिनाब नहर कॉलोनी बिल के खिलाफ किसानों को आयोजित किया।

अजित सिंह के खिलाफ 22 मामले दर्ज हो चुके थे जिसके कारण उन्हें ईरान पलायन करना पड़ा। उनके परिवार ग़दर पार्टी के समर्थक थे और इसी कारण से बचपन से ही भगत सिंह के दिल में देश भक्ति की भावना उत्पन्न हो गयी।

भगत सिंह ने पांच तक की पढाई गाँव में की और उसके बाद उनके पिता किशन सिंह ने दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल, लाहौर में उनका दाखिला करा दिया था। बहुत ही छोटी उम्र में भगत सिंह, महात्मा गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन से जुड़ गए और बहुत ही बहादुरी से निडर होकर ब्रिटिश सेना को ललकारा करते थे। चौरी चोरा में हुई हिंसात्मक गतिविधियों के कारण गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन बंद कर दिया था. गांधी जी के इस फैसले से नाखुश होकर भगत सिंह ने अहिंसावादी बातों को छोड़ दिया था. उनका मानना था कि स्वतंत्रता पाने के लिए हिंसक होना बहुत जरूरी है

भगत सिंह द्वारा राष्ट्रीय आन्दोलन और क्रांतिकारी गतिविधियां-

13 अप्रैल 1919 को हुए जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। जिसके चलते लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिये नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी।

काकोरी काण्ड में राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ सहित चार क्रान्तिकारियों को फाँसी व 16 अन्य को कारावास की सजाओं से भगत सिंह इतने आहत हुए कि पण्डित चन्द्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन से जुड गये और उसे एक नया नाम दिया हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन। इस संगठन का उद्देश्य सेवा, त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले नवयुवक तैयार करना था। भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसम्बर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अधिकारी जे० पी० सांडर्स को मारा था। इस कार्रवाई में क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद ने उनकी पूरी सहायता की थी।  पूरी पार्टी ने एक साथ मिलकार 30 अक्टूबर 1928 को भारत में आये सइमन कमीशन का विरोध किया, जिसमें उनके साथ लाला लाजपत राय भी थे. “साइमन वापस जाओ” का नारा लगाते हुए, वे लोग लाहौर रेलवे स्टेशन में ही खड़े रहे. जिसके चलते वहां लाठी चार्ज हो गयी जिसमें लाल जी घायल हो गये और बाद में उनकी मृत्यु हो गयी।

अब उन्होंने लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने का मन बना लिया था जिसमे भगत सिंह ने एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सौन्देर्स की हत्या की। पुलिस ने भगत सिंह को पकड़ने के लिए कई असफल प्रयत्न किये और हमेशा वह भगत सिंह को पकड़ने में नाकाम रही। और कुछ समय बाद ही भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर प्रधान विधि सदन पर दो बम और एक पत्र फेका। जहा वे दोनों अपनी योजना के अनुसार पकडे गये। जहा एक हत्या के आरोप में उन्हें जेल में भेजा गया, और जब उन्होंने यूरोपियन कैदियों को समान हक्क दिलाने के लिए 116 दिन के उपवास की घोषणा की तब दूर दूर से उन्हें पुरे राष्ट्र की सहायता मिली।

लाहौर षड़यंत्र मामले में भगत सिंह,  सुखदेव और राजगुरू को फाँसी की सज़ा सुनाई गई व बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास दिया गया।

भगत सिंह को 23 मार्च, 1931 की शाम सात बजे सुखदेव और राजगुरू के साथ फाँसी पर लटका दिया गया। तीनों ने हँसते-हँसते देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया

“सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है.”

Bhagat Singh में बचपन से ही देशसेवा की प्रेरणा थी। उन्होंने हमेशा ब्रिटिश राज का विरोध किया। और जो उम्र खेलने-कूदने की होती है उस उम्र में उन्होंने एक क्रांतिकारी आन्दोलन किया था। भगत सिंह की बहादुरी के कई किस्से हमें इतिहास में देखने मिलेंगे।

वे खुद तो बहादुर थे ही लेकिन उन्होंने अपने साथियों को भी बहादुर बनाया था और ब्रिटिशो को अल्पायु में भी धुल चटाई थी। वे भारतीय युवायो के आदर्श है और आज के युवायो को भी उन्ही की तरह स्फुर्तिला बनने की कोशिश करनी चाहिये।

आज भी भारत और पाकिस्तान की जनता भगत सिंह को आज़ादी के दीवाने के रूप में देखती है जिसने अपनी जवानी सहित सारी जिन्दगी देश के लिये समर्पित कर दी।

भगत सिंह द्वारा लिखी गयी पंक्तियां-

उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज़-ए-ज़फ़ा क्या है?
हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है?

दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख का क्या ग़िला करें।
सारा जहाँ अदू सही, आओ! मुक़ाबला करें।।

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