Rani Padmani Story & History in Hindi | रानी पद्मावती अपनी सुन्दरता के लिये पुरे भारत में जानी जाती थी। लेकिन रानी पद्मिनी के अस्तित्व को लेकर इतिहास में कोई दस्तावेज मौजूद नही है। कुछ लोग उसके होने को सही मानते है जबकि कुछ मात्र कल्पना। ऐसा होने की मुख्य वजह यह है की अलाउद्दीन ख़िलजी और रतन सिंह के समकालीन आमिर खुसरों ने अपनी रचनाओं में पद्मनी का कही वर्णन नहीं किया है।
रानी पद्मनी का सर्वप्रथम वर्णन मलिक मोहम्मद जायसी के महाकाव्य पद्मावत में मिलता है जो कि घटना के लगभग 240 वर्ष बाद का ग्रंथ है। साथ ही राजस्थान की प्रचलित लोक मान्यताओं व गीतों में भी पद्मिनी का जि़क्र मिलता है। यहाँ तक की राजस्थान के चित्तौडगड़ में बने एक मंदिर में पद्मावती यानी पद्मिनी की प्रतिमा स्थापित है।
मान्यता है की रानी पद्मनी सुंदरता की साक्षात देवी थी। रानी के रूप के बारे में वर्णन तो यहां तक मिलता है कि वो पानी पीती थीं तो उनके गले से पानी नीचे जाता हुआ दिखता था। आइये जानते है रानी पद्मनी का इतिहास के बारे में
कौन थी रानी पद्मिनी (Rani Padmani)
रानी पद्मिनी या रानी पद्मावती के पिता का नाम गंधर्वसेन था जोकि प्रांत(श्रीलंका)के राजा थे और माता का नाम चंपावती था। उनका विवाह चित्तौड़ के राजपूत राजा रावल रतन सिंह से हुआ था। माना जाता है कि रावल रतन सिंह जी पूर्व से विवाहित थे। उसके बाद उनका विवाह पद्मिनी से हुआ। रानी पद्मावती बाल्यकाल से ही बेहद सुंदर और आकर्षक थी । माना जाता हैं कि रानी के पास एक तोता था जिसका नाम हीरामणि ऱखा गया था जोकि बोलता था।
रानी पद्मावती का रोचक इतिहास
मान्यताओं के अनुसार राजा के एक गद्दार ने खिलजी वंश के शासक अलाउद्दीन खिलजी के सामने रानी की सुंदरता की बहुत प्रशंसा की। खिलजी ये सब सुनकर रानी को देखने के लिए बेसब्र हुआ। उसने चित्तौड़ के किले पर हमला कर दिया। समझौते के लिए उसने रतन सिंह जी के सामने शर्त रखी कि रानी पद्मिनी (Rani Padmani) को अपनी बहन समान मानता है और उनसे मिलना चाहता है।
सुल्तान की बात सुनते ही रतन सिंह ने उसके रोष से बचने और अपना राज्य बचाने के लिए उसकी बात से सहमत हो गया। रानी पद्मिनी अलाउदीन को कांच में अपना चेहरा दिखाने के लिए राजी हो गई। जब अलाउदीन को ये खबर पता चली तो वो बहुत खुश हुआ उसने रानी को अपना बनाने की चाह जाग गई।
रानी पद्मिनी (Rani Padmani)को देखने के बाद खिलजी ने राजा रतन सिंह के सामने समझौते का ढोंग रचाया और जब वापस अपने शिविर में लौटते वक़्त अलाउदीन कुछ समय के लिए रतन सिंह के साथ चल रहा था। तब मौका देखकर रतन सिंह को बंदी बना लिया और पद्मिनी की मांग करने लगा। चौहान राजपूत सेनापति गोरा और बादल ने सुल्तान को हराने के लिए एक चाल चलते हुए खिलजी को संदेश भेजा कि अगली सुबह पद्मिनी को सुल्तान को सौप दिया जाएगा।
अगले दिन सुबह 150 पालकियां किले से खिलजी के शिविर की तरफ रवाना की। पालकियां वहा रुक गई जहां पर रतन सिंह को बंदी बना रखा था। पालकियो को देखकर रतन सिंह ने सोचा, कि ये पालकिया किले से आयी है और उनके साथ रानी भी यहां आई होगी ,वो अपने आप को बहुत अपमानित समझने लगा।
उन पालकियो में ना ही उनकी रानी और ना ही दासिया थी और अचानक से उसमे से पूरी तरह से सशस्त्र सैनिक निकले और रतन सिंह को छुड़ा दिया और खिलजी के अस्तबल से घोड़े चुराकर तेजी से घोड़ो पर पर किले की ओर भाग गए। गोरा इस मुठभेड़ में बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये जबकि बादल, रतन सिंह को सुरक्षित किले में पहुंचा दिया।
सुल्तान ने गुस्से में आकर अपनी सेना को चित्तौड़ पर आक्रमण करने का आदेश दिया। सेना ने किले में प्रवेश करने की कड़ी कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा। अब खिलजी ने किले की घेराबंदी करने का निश्चय किया। ये घेराबंदी इतनी कड़ी थी कि किले में खाद्य आपूर्ति धीरे धीरे समाप्त हो गयी।
अंत में रतन सिंह ने द्वार खोलने का आदेश दिया और उसके सैनिको से लड़ते हुए रतन सिंह वीरगति को प्राप्त हो गया। ये सुचना सुनकर पद्मिनी ने सोचा कि अब सुल्तान की सेना चित्तौड़ के सभी पुरुषो को मार देगी। अब चित्तोड़ की औरतो के पास दो विकल्प थे या तो वो जौहर के लिए प्रतिबद्ध हो या विजयी सेना के समक्ष अपना अपमान करवाएं।
उन्होंने एक विशाल चिता जलाई और चित्तौड़ की सारी औरते उसमे कूद गयी और इस प्रकार दुश्मन बाहर खड़े देखते रह गए। अपनी महिलाओ की मौत पर चित्तौड़ के पुरुष के पास जीवन में कुछ नही बचा था। चित्तौड़ के सभी पुरुषो ने केसरी वस्त्र और पगड़ी पहनकर दुश्मन सेना से तब तक लड़े जब तक कि वो सभी खत्म नही हो गए।
विजयी सेना ने जब किले में प्रवेश किया तो उनको राख और जली हुई हड्डियों के साथ सामना हुआ। जिन महिलाओ ने जौहर किया उनकी याद आज भी लोकगीतों में जीवित है जिसमे उनके गौरवान्वित कार्य का बखान किया जाता है।