Lal Kitab क्या हैं? यह अपने आसान और सटीक उपायों के लिये जानी जाती हैं। मान्यता है कि लाल किताब के सभी उपाय, लाल किताब के सिद्ध टोटके यदि कोई विधि पूर्वक करता है तो उसके सभी प्रकार के कष्ट व परेशानियां दूर हो जाती हैं।
माना जाता है कि लंकाधिपति रावण ने सूर्य के सारथी अरूण से इस विद्या को प्राप्त कर इन उपायों को अरूण संहिता ग्रंथ में लेखनीवद्ध किया था। इसके बाद काफी समय गुजरजाने के बाद यह ग्रंथ किसी कारण से “आद” नामक जगह पहुंच गया, जहां इस किताब का अनुवाद अरबी और फारसी भाषा में किया गया। माना जाता है कि वर्तमान में भी यह लाल किताब मूल रूप में फारसी भाषा में है।
मान्यता हैं कि लाहौर में एक बार जमीन की खुदाई हुई तब वहां पर खुदाई के दौरान तांबे की पट्टिकाएं प्राप्त हुई जिन पर उर्दू व अरबी भाषा में यह लाल किताब लिखी हुई मिली। इसके उपरान्त 1936 में लाल किताब को अरबी भाषा में लाहौर में प्रकाशित किया गया, जिसके उपरांत यह बहुत ही लोकप्रिय हो गयी।
Lal Kitab के रचयिता कौन थे? भारत में पंजाब राज्य के फरवाला गांव जिला जालंधर के निवासी पंडित रूप चंद जोशी जी ने सन 1939 से 1952 के बीच इसके पाँच खंण्डों की रचना की। यह ग्रंथ सामुद्रिक तथा समकालीन ज्योतिष पर आधारित हैं। इस पद्धति के कुछ नियम आम प्रचलित ज्योतिष से कुछ भिन्न हैं। इसे आम लोगों की बोलचाल वाली भाषा में लिखा गया हैं। जिस प्रकार तुलसीदास के द्वारा आम लोगों के लिए ‘रामचरितमानस’ लिखा गया था उसी तरह पंडित रूप चंद जोशी जी ने ज्योतिष का यह ग्रंथ आम लोगों के लिए लिखा-
लाल किताब के पांचों संस्करण इस प्रकार हैं-
1-लाल किताब के फरमान इसे सन 1939 में प्रकाशित किया गया।
2-लाल किताब के अरमान इसे सन् 1940 में प्रकाशित किया गया।
3-लाल किताब(गुटका) इसे सन् 1941 में प्रकाशित किय गया।
4- लाल किताब इसे सन् 1942 में प्रकाशित किया गया।
5-लाल किताब इसे सन 1952 में प्रकाशित किया गया।
लाल किताब की विशेषताएं-
लाल किताब की कुछ विशेषताएं भी हैं जो अन्य सैद्धान्तिक या प्रायोगिक फलित ज्योतिष-ग्रंथों से हटकर हैं। इस विद्या की मुख्य बातों में ग्रहों को संसार की तमाम जीवित और अजीवित वस्तुओं से सम्बन्धित किया गया है। अतः दुनिया में मौजूद सभी वस्तुयें किसी न किसी ग्रह से सम्बन्ध रखती है और ग्रहों के प्रभाव पर असर भी करती है। अर्थात जिस प्रकार से ग्रह व्यक्ति के जीवन पर प्रभाव डालते हैं।
उसी प्रकार से ये चीजें भी इन ग्रहों के समान प्रभावकारी होती है। जैसे- केसर का सम्बन्ध बृहस्पति ग्रह से है, अतः केसर का प्रयोग करने से व्यक्ति का बृहस्पति ग्रह बलवान हो जाता है। इसी प्रकार से अन्य कमजोर ग्रहों को उससे से सम्बन्धित वस्तुओं का प्रयोग करके बलवान किया जा सकता है।
जैसा कि ज्योतिष विद्या में माना जाता है कि ग्रहों का प्रभाव निश्चित है और उसमें कोई अन्तर या परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। किन्तु ’लाल किताब विद्या’ के अनुसार यदि कोई ग्रह अशुभ फल दे रहा है, तो उसके प्रतिकूल प्रभाव को उपायों एंव टोटकों द्वारा अनुकूल रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। इस विद्या की तीसरी विशेष बात यह है कि यह विद्या कर्मफल सिद्धान्त पर आधारित है। जैसे मंगल ग्रह का प्रभाव उस व्यक्ति के अपने भाई से सम्बन्ध कैसे है? क्योंकि भाई से मधुर सम्बन्ध होने पर शुभ फल एंव इसके विपरीत होने पर अशुभ फल मिलेंगे। मुख्य रूप इस विद्या में ग्रहो के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए उपाय, आचरण तथा टोटके दिये गये है, जो काफी प्रभावशाली देंखे गयें है। क्योंकि ये काफी सरल है तथा व्यक्ति इन्हे आसानी से कर सकता है। हांलाकि उपाय बहुत सरल होते है, परन्तु उनमें विधि-विधान की जटिलतायें होती है। यदि श्रद्धा एंव विश्वास के साथ उपाय और टोटके किये जायें तो अनुकूल परिणाम सामने आते है।
‘लाल किताब’ में धर्माचरण और सदाचरण के बल पर ग्रह दोष का निवारण किया जाता है, इससे व्यक्ति का वर्तमान लोक के साथ साथ परलोक भी बनेगा। लाल किताब में विभिन्न प्रकार के ग्रह दोषों से बचाव के लिए सैकड़ो टोटकों का विधान हैं। लाल किताब में जीवन का ऐसा कोई पक्ष नहीं है, जिससे सम्बन्धित टोटके न बतलाए गये हों।