Motivational Story in Hindi: आज हर कोई सफल होना चाहता है, हर कोई पैसा,नाम शोहरत कमाना चाहता है। परंतु सबसे अहम सवाल यह है कि आखिर सफलता की परिभाषा क्या है। बिना किंचित हुए सफलता कैसे पाई जाए, और मात्र एक बार सफल हो जाने पर क्या इंसान पूरी उम्र कैसे सफल हो सकता है। भारत ऐसा देश जहां बचपन से ही बच्चे के दिमाग में यह भर दिया जाता है की सफलता की गारंटी है अच्छी शिक्षा, अगर नहीं पढ़ोगे तो सफल नहीं होंगे। अच्छी जगह से नही हो तो तुम्हारा कोई भविष्य नही है। किसान का बेटा किसान,लोहार का बेटा लोहार और गरीब के बेटे पर गरीब का निशान बना दिया जाता है।
सफलता की राह – प्रेरणादायक कहानी
आज भारत बदल रहा है जीवन जीने के तरीके बदल रहे हैं शिक्षा का संबंध सफलता से उतना ही रह गया है जैसे एक छिपकली का उसकी पूंछ से, बात साफ है अगर आपमे दमखम हैंखुद को आगे ले जाने की क्षमता है तो यकीन मानिए आप किसी कागज के मोहताज नहीं हैं। आजकी नैतिक कहानी मे सफल लोगों की कड़ी में हम बात करने जा रहे हैं एक ऐसे शख्स की जिसने जीवन की अपार मुश्किलों के बाद भी सफलता की एक एक ऐसी इबारत लिखी जो सालों तक नौजवानों को उत्साहित के साथ साथ आगे बढ़ने के लिए प्रोतसाहित करेगी।
छत्तीसगढ़ के छोटे से गांव बयांग के एक लड़के की है यह कहानी। यह कहानी है उस इंसान की जिस ने मात्र 8 साल की उम्र अपने-अपने मार्गदर्शक और अपने पालनहार पिता को खो दिया। मां चौथी कक्षा तक पढ़ी थी। बाप का साया सिर से उठ चुका था।बच्चे के पालन-पोषण की जिम्मेदारी मां पर आ गई थी। उसे अच्छी शिक्षा देना उसे अच्छा इंसान बनाना उनकी प्राथमिकता थी परंतु आस-पास के गांव में ना तो कोई अंग्रेजी विद्यालय था और ना ही शिक्षा का स्तर इतना अच्छा था। अपनी जिज्ञासा के दम पर 8 साल का बालक अपनी अभिरुचि को पालता गया,वजाए की वो अपने किस्मत को दोष दे उसने खुद की किस्मत खुद से लिखने की ठानी।
यह कहानी है बयांग जैसे छोटे गांव से निकलकर छत्तीसगढ़ के रायपुर के जिला कलेक्टर रहे ओपी चौधरी की। किस तरह बाप का साया सर से जाने के पश्चात भी उन्होंने हार नहीं मानी और भारत के सबसे बड़े प्रशासनिक पद को अपनी मातृभाषा के दम पर पाकर दिखाया। ओपीचौधरी ने जो मुसीबतें सही और संघर्ष किया उस दुख में कोई भी आम इंसान टूट कर बिखर जाता है।
ओपी चौधरी की आरंभिक शिक्षा शिक्षा
ओपी चौधरी की आरंभिक शिक्षा रायपुर से 213 किलोमीटर दूर बयांग के प्राइमरी स्कूल में पांचवी तक संपन्न हुई। इसके बाद की मिडिल क्लास की पढ़ाई जेमुरा से की। यह वह दौर था जब तत्कालीन सरकार ने नवोदय विद्यालय की शुरुआत की थी ओपी चौधरी नवोदय विद्यालय की परीक्षा में शामिल हुए उन्होंने खूब मेहनत भी की, पर पास ना हो पाए। आसफलता का स्वाद चखने के बाद भी ओपी ने हार नहीं मानी और अपनी गलतियों का विश्लेषण करने के पश्चात नए सिरे से तैयारी शुरू की। गांव के सरकारी स्कूल से 12वीं करने के पश्चात ओपी चौधरी ने भिलाई के एक कॉलेज से ग्रेजुएशन पुरा किया।
एक घटना को याद करते हुए चौधरी कहते हैं… मैं एक बार अपने किसी मित्र से मिलने शहर के अच्छे स्कूल में पहुंचा। बाहर के रंग रोगन से स्कूल की बिल्डिंग सुंदर लग रही था। वह अंदर जाना चाहते थे। जब वह गेट पर पहुंचे तो गेट के चौकीदार ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया और धक्का मार के भगा दिया। शायद उनके पहनावे और गांव से होने के कारण स्कूल के चौकीदार ने ऐसा किया। इस घटना का ओपी चौधरी के मन पर बहुत गहरा असर हुआ। उन्होंने ठान लिया कि वह दोबारा कुछ बड़ा करके वापस आएंगे और इस मिथ्या को तोड़ेंगे की एक इंसान की पहचान उसके जन्म स्थान और उसके पहनावें से होती है।जब वह एक प्रशासनिक अधिकारी बनकर दुबारा वहां पहुंचे तो स्कूल के चपरासी ने अपने द्वारा किये अपमान के लिए उनसे क्षमा मांगी और उन्हें गले से लगा लिया।
सफलता हाथ फैला कर नहीं मिलती,कुरबानी मांगती है
अपनी तैयारी के दौरान की घटनाओं को उजागर करते हुए ओपी चौधरी कहते हैं कि सिविल सेवा की तैयारी के लिए दिल्ली जाना था। ना तो उनके पास इतने पैसे थे और ना कोई सहारा कि वह दिल्ली में कहीं अच्छी जगह रुक सकते थे। बड़ी मसक्कत के बाद कोचिंग से कई किलोमीटर दूर एक कमरा किराए पर लिया।कमरे की छत Asbestos की थी। जेष्ठ का मौसम था और कमरे की छत एस्बेस्टस की होने की कारण इतनी तपती थी की चौधरी पसीने से लतपथ हो जाया करते थे। गर्मी से सिर चकराने लगता था।कई बार स्थितियां ऐसी आ जाती थी कि मन करता की सब कुछ छोड़ कर वापस चला जाए पर जो दृढ़ संकल्प उन्होंने पाल कर सपना देखा था उसे वो छोड़ कर कैसे जा सकते थे??
ओपी बताते हैं कि रोज मीलों का सफर करके वह कोचिंग जाया करते थे। खाने की बड़ी दिक्कत थी, उनके पास इतने पैसे नही थे कि वो भरपेट खाना खा सके। उनके कुछ मित्र अपने टिफिन से खाना खिला दिया करते थे। आधे आधे पेट खाने के बावजूद उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। उनके पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं था, इसलिए चौधरी ने हार नही मानी। अपने साहस हिम्मत और आत्मविश्वास के दम पर ओपी चौधरी ने न सिर्फ छत्तीसगढ़ का नाम रोशन किया बल्कि वो छत्तीसगढ़ के पहले जिला कलेक्टर बने।
ओपी चौधरी का साहसिक सफर
मात्र चौथी कक्षा तक पढ़ी कौशल्या देवी को अंदाजा भी नहीं था कि उनका बेटा इतना बड़ा अफसर बन बन गया है। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने बताया कि किस तरह बेटे ने जीवन गरीबी और विषमताओं के बीच बिताया है। ओपी उस वक़्त को याद करते हुवे भावुक हो जाते है जब उन्हें अपने पिता की पेंशन निकालने के लिए सरकारी कार्यलयों का ना जाने कितने चक्कर मारने पड़े। कभी इस टेबल से उस टेबल तो कभी इस बाबू से उस बाबू के पास। ओपी समझ चुके थे कि सिस्टम में काफी भ्रष्टाचार है, अगर इसे दूर करना है तो सिस्टम में जाना ही होगा। मात्र 22 साल की उम्र में अपने पहले प्रयास में 2015 में चौधरी ने देश की सबसे प्रतिष्ठित एग्जाम को क्रैक कर लिया। उन्हें छत्तीसगढ़ का पहला जिला कलेक्टर होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
ओपी चौधरी के समक्ष प्रशासनिक चुनौतियां और उनकी क्षमता है।
ओपी की पहली पोस्टिंग असिस्टेंट कलेक्टर के रूप में 2006 में कोरबा में हुई। इसके बाद 2007 में उन्हें रायपुर का एसडीओ बनाया गया। 2011 में जब चौधरी दंतेवाड़ा में कलेक्टर के पद पर गए तो उनके सामने बहुत सारी चुनौतियां थी। दंतेवाड़ा एक आदिवासी इलाका था और आर्थिक और सामाजिक रूप से बहुत पिछड़ा हुआ था।दंतेवाड़ा में शिक्षा का स्तर एकदम निम्न था। अपने कार्यकाल के दौरान ओपी चौधरी ने दंतेवाड़ा में कई सारे असाधारण कार्य किए। उन्होंने मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज के दाखिले के लिए विशेष कोचिंग और बच्चों के लिए आवास सुविधाओं का निर्माण कराया। न जाने कितने बच्चे उनके बदौलत डॉक्टर और इंजीनयर बन गए।
दंतेवाड़ा में आय का कोई स्रोत नहीं था उन्होंने वहां लवली हुड मिशन शुरू किया।जिसको बाद में पूरे प्रदेश में लागू किया गया। उनके असाधारण कार्यो को देखते हुए 2011-12 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा उन्हें एक्सलिलेंस अवार्ड से सम्मानित किया गया।
ओपी चौधरी यहीं नहीं रुके अपनी सरकारी सेवा के दौरान उन्होंने पाया कि प्रशाशनिक पद पर रहते हुवे वो उतना नही कर पा रहे जितना उन्हें करना चाहिए। सरकारी कर्मचारी की कुछ सीमाएं होती है। उन्हें सरकार द्वारा बनाये परिधि में रहकर कार्य करना होता है। इतने Boundationके बाद वो कर पाना जिसके लिए आप सर्विस में आये है,आप कर नही पाते। इन्हीं सब बातों के मद्देनजर रखते हुवे ओपी ने पद से इस्तीफा देकर राजनीति में उतरने का मन बनाया।
ओपी चौधरी की राजनीति में दूसरी पारी
छत्तीसगढ़ की जनता की सेवा भावना को मन मे रखते हुवे एक सुकून की नौकरी को त्याग कर ओपी ने चुनाव लड़ने जैसे कठीन फैसले लिए। उन्हें वहां की जनता का अपार स्नेह प्राप्त था। 2019 के लोकसभा चुनाव में ओपी ने भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और बहुत ही निम्न मतों से पराजित हुवे। किसी को नही मालूम था कि ये एक छोटे से गांव से आया लड़का उतनी बड़े पद को त्याग कर जनता के हित में चुनाव तक आ जाएगा। हार के बावजूद जो प्यार और सपोर्ट छत्तीसगढ़ की मिट्टी ने दिया उसे उन्होंने बखूभी सिर झुकाकर माथे सजाया।,उनकी लोकप्रियता आज युवा पीढ़ी के नेताओ की लिस्ट में सबसे ऊपर आती है। शायद ही छत्तीसगढ़ का कोई ऐसा युवा होगा जो ओपी चौधरी को नही जानता होगा। आज भी ओपी चौधरी जनता की सेवा में सेवार्थ भाव से लगे हुवे है।
मंज़िल कभी आसान नही होती,बनानी पड़ती है
बयांग जैसे छोटे गांव से आकर प्रधानमंत्री द्वारा एक्सीलेंस अवार्ड पाना। वाकई में दिलचस्प सफर मालूम पड़ता है।ओपी चौधरी ने साबित कर दिया कि अगर मन मे कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो रास्ता कितना भी मुश्किल क्यो न हो मंज़िल कदमो के नीचे होती है। चट्टानो को काट काट भी रास्ता बनाया जा सकता है।बकौल ओपी चौधरी ‘मुश्किले किसी को तोड़ने के लिए नही आती बल्कि उस इंसान की क्षमताओं से उसे परिचित कराने के लिए आती है।’इसलिए खुद पर यकीन रख कर कोई कार्य किया जाए तो सफलता अवश्य मिलती है।जिन आशाओं और सपनों का दीप ओपी ने जलाया था वो आज भी छत्तीसगढ़ के साथ साथ पुरे भारत के युवा पीढ़ी को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहा है।
धन्यवाद जी।