वल्लभाचार्य जयंती एवं जीवन परिचय….

Happy Vallabhachary Jayanti in Hindi- 11 अप्रैल 2018 को प्रभु वल्लभाचार्यजी की जयंती है। बल्लभाचार्य को अग्निदेव का अवतार माना जाता है। इनका जन्म तब हुआ जब भारतीय संस्कृति पर चारों तरफ से विधर्मियों द्वारा आक्रमण हो रहे थे। समाज में सर्वत्र निराशा थी। परस्पर संघर्ष, अविश्वास, भगवान के प्रति अनास्था और अशान्ति फैली हुई थी। ऐसे समय में प्रभु वल्लभाचार्यजी ने सनातनधर्मियों को पुन: भगवत्सेवा और प्रभु स्मरण का उपदेश देकर अपने धर्म से जोड़ने का सफल प्रयास किया।
आचार्यचरण श्रीमद्वल्लभाचार्य जी ने पुष्टि मार्ग और पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति का प्रचार करने के लिए भारतवर्ष की तीन परिक्रमाएं कीं। भारत भ्रमण करते हुए आपने चौरासी बैठकें स्थापित कीं और चौरासी वैष्णव बनाये। आपने श्रीगोवर्धन में रहकर श्री गिरिराजजी में मन्दिर बनवाया, उसमें सच्चिदानन्द प्रभु श्रीनाथजी की स्थापना की। स्वयं श्रीमहाप्रभुजी ने अपने जीवन में प्रभु श्रीकृष्ण चन्द्र के नाम का कभी भी विस्मरण नहीं किया।
पुष्टि सम्प्रदाय में श्रीमद्वल्लभाचार्यजी को साक्षात श्रीकृष्ण रूप प्रभु श्रीनाथ जी मुखावतार माना गया है। इसी कारण उनकी पवित्र पादुकाएं, जिन्हें धारण कर उन्होंने सम्पूर्ण भारत की परिक्रमाएं की थीं और श्रीकृष्ण भक्ति का प्रचार-प्रसार किया था, श्रीवल्लभ सम्प्रदाय के मंदिरों में विराजमान हैं और उन्हें भगवत्स्वरूप मानकर उनकी नित्य सेवा की जाती है।

वल्लभाचार्य का जीवन परिचय- Vallabhachary Biography in hindi

वल्लभाचार्य प्रारम्भिक जीवन- Early Life of Vallabhachary

बल्लाभाचार्य का जन्म 1478 में छत्तीसगढ के रायपरु नगर के समीप चंपारण गांव में हुआ थी. इनके पिता का नाम लक्ष्मण भट्ट और माता का नाम इलम्मागारू था। यह एक तैलंग ब्राह्मण थे। इनके जन्म को लेकर एक किंवदती है कि इनका जन्म अष्टमास में ही हो गया था. जन्म के दौरान इन्हे मृत जानकर माता पता नें इन्हे छोड़ दिया था जिसके बाद श्री नाथ जी ने स्वंय स्वप्न में माता इल्लमागारू को दर्शन दिये औह कहा कि स्वंय श्रीनाथ जी आपके गर्भ से प्रकट हुए हैं जिस शिशु को आप मृत समझ कर छोड़ आये हैं वह जीवित हैं। इसके पश्चात माता पिता इन्हे लेने के लिए पहुंचे तो देखा कि यह उसी स्थान पर अग्निकुंड के बीच अंगूठा चूस रहे हैं और अग्निकुंड के आस-पास सात अवगढ़ सादु बैठे हैं, जब इनके माता पिता ने कहा कि यह शिशु मेरा हैं तो साधुओं ने अग्निकुंड से शिशु को निकालने में असमर्थता प्रकट की इसके बाद उन्होंने श्रीनाथ जी का ध्यान लगाया और तब जाकर शिशु को अग्निकुंड से बाह निकाला. इसी कारण वल्लभाचार्य जी को अग्निअवतार भी कहा जाता हैं एवं चंपारण पुष्टिमार्गी साधना का स्थल माना जाता हैं।

वल्लभाचार्य की शिक्षा- Vallabhacharya’s education

वल्लभाचार्य की शिक्षा दीक्षा काशी में प्राप्त हुई, इन्हे अष्टादसाक्षरगोपाल मंत्र की शिक्षा रूद्र सम्प्रदाय के विल्वमंगलाचार्य के द्वारा एवं त्रिदंड सन्यास की शुक्षा स्वामी नारायनेंद्र्तिऱ्थ से प्राप्त हुई।

वल्लभाचार्य का अर्थशास्त्र-Economics of Vallabhacharya

वल्लभाचार्य के मुताबिक संसार में तीन तत्व मुख्य रूप से विद्यमान हैं- ब्रह्म यानि ईश्व, ब्रहमांड यानि जगत एवं आत्मा यानि जीव. वल्लभाचार्य द्वारा इन तीनों चीजों को अपने दर्शनशास्त्र का आधार बनाया और इनके आधार पर ही इस जगत के प्राणियों को विभिन्न प्रकारों का उल्लेख किया. वल्लभाचार्य का कहना था कि पृथ्वी पर एक मात्र सत्य ब्रह्म हैं. वल्लभाचार्य ने श्रीकृष्ण जी को अपना ब्रह्म माना था, जिसे लेकर वह सदेव इनकी महिमा का बखान करते रहते थे। वल्लभाचार्य ने संसार के प्रत्येक जीव को इसी ब्रह्म का अंश बताया हैं, उनके अनुसार “परमात्मा ही जीव आत्मा के रूप में संसार में छिटका हुआ हैं.”

वल्लभाचार्य के शिष्य 

माना जाता हैं कि वल्लभाचार्य के 84 शिष्य थे जिनमें सूरदास, कम्भनदास, कृष्णदास एवं परमानंद दास प्रमुख शिष्य थे।

श्री वल्लाभाचार्य की रचनाएं

वल्लभाचार्य द्वारा स्वयं तो ग्रंथ लिखे ही हैं साथ ही आपके द्वारा सूरदास जैसे कवि को लीलाधर की लीलाओं से परिचित करवाकर उन्हें भी लीलागान की प्रेरणा दी जिस कारण हम श्री कृष्ण की बाल लीलाओं से रूबरू होते हैं। आपने अनेक भाष्य, ग्रंथ, नामावलियां, स्त्रोत आदि की रचना की है। आपकी प्रमुख सोलह रचनाओं को षोडष ग्रंथ के नाम से जाना जाता है। इनमें हैं – यमुनाष्टक, बालबोध, सिद्धांत मुक्तावली. पुष्टि प्रवाह मर्यादा भेद, सिद्धांत रहस्य, नवरत्न स्त्रोत, अंत:करण प्रबोध, विवेक धैर्याश्रय, श्री कृष्णाश्रय, चतु:श्लोकी, भक्तिवर्धिनी, जलभेद, पञ्चपद्यानि, संन्यास निर्णय, निरोध लक्षण, सेवाफल आदि हैं।

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