हिंदी भाषा विवाद: सोनू सूद ने क्या कहा? हिंदी राष्ट्रभाषा क्यों नहीं, शिक्षा में क्यों जरूरी है हिंदी? इंटरनेट की बढ़ती हुई भाषाएं हिंदी

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हिंदी भाषा विवाद: सोनू सूद ने क्या कहा? हिंदी राष्ट्रभाषा क्यों नहीं, शिक्षा में क्यों जरूरी है हिंदी? इंटरनेट की बढ़ती हुई भाषाएं हिंदी

हिंदी भाषा (Hindi bhasha Vivad Sonu Sud) विवाद को लेकर तरह तरह की टिप्पणियां की जा रही हैं।  आपको बता दें राजनीति के चश्मे से हमेशा भाषा को देखा गया है। हालांकि भारत के कई भाषाओं (Indian regional language) का देश है। ऐसे में यहां पर सभी  भाषाओं का सम्मान है। लेकिन अफसोस अंग्रेजी हर क्षेत्रीय भाषाओं में अपनी गहरी पकड़ बना रही है। जबकि स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाषाओं में हिंदी (Hindi language) भारतीयों की पहचान के रूप में स्थापित हुई थी। जबकि आजादी के बाद किसी भाषा को आधिकारिक रूप से राष्ट्रभाषा (national language in India) ना बनाकर अंग्रेजी को कामकाज की अधिकारिक भाषा केंद्र सरकार (central government) की बना दी गई।  अंग्रेजों की गुलामी  वाली भाषा अंग्रेजी (English Hindi language)  का उस समय विरोध भी हुआ था।  राजनीति  ने इसे हिंदी से क्षेत्रीय भाषा की लड़ाई बता कर अपनी रोटियां सेकने लगे। हिंदीभाषा (इंडियन हिंदी लैंग्वेज कंट्रोवर्सी) विवाद में सोनू सूद का क्या कहना है आइए जाने-

(South Indian film) इस समय साउथ इंडियन फिल्में क्षेत्रीय भाषाओं (regional languages) के अलावा हिंदी दर्शकों को खूब पसंद आ रही है। किसी कारण अंदाजा लगाया जा रहा है कि हिंदी भाषा में बनने वाले बॉलीवुड फिल्मों पर गहरा संकट छाने जा रहा है। इसलिए हिंदी भाषा को लेकर  कई तरह के बयान आ रहे हैं। इसके कई  अलग अलग राजनीतिक मायने हैं। हिंदी भाषा विवाद ( Hindi bhasha Vivad) पर सोनू सूद का भी रिएक्शन आया आपको बता दें कि सोनू सूद हिंदी फिल्मों के अलावा साउथ इंडियन फिल्मों में भी बहुत सक्रिय है।

हिंदी विवाद पर सोनू सूद क्या बोले

 सोनू सूद ने कहा कि बॉलीवुड की केवल एक ही भाषा है वह एंटरटेनमेंट की भाषा (entertainment language) है। उन्होंने मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि भारत की एक नहीं कई भाषाएं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारत की कोई एक राष्ट्रभाषा (no any National language in India) नहीं हो सकती है। उन्होंने कहा कि इंटरटेनमेंट की कोई भाषा नहीं हो सकती है। उनके दिए गए इस बयान की कई मायने हो सकते हैं लेकिन यह है कि हिंदी को जब भी राष्ट्रभाषा का दर्जा देने की बात आती है तब तब उसकी तुलना अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओं से करके हिंदी को कम आंका जाता है। 

हिंदी को लेकर बढ़ता विवाद

  हिंदी भाषा को लेकर  कन्नड़ एक्टर किच्चा सुदीप का अजीबोगरीब बयान आया कि  हिंदी अब राष्ट्रभाषा नहीं रही है और बॉलीवुड पैन इंडिया फिल्में बना रहा है। इसके बाद एक्टर अजय देवगन (actor Ajay Devgan Hindi statement) ने किच्चा सुदीप के बयान पर पलटवार करते हुए कहा  कि हिंदी राष्ट्रभाषा थी, है और रहेगी।

आपको बता दें कि हिंदी राष्ट्रभाषा के रूप में हमारे दिलों  है लेकिन अभी भी हिंदी दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं की तरह राजभाषा के रूप में ही इसको दर्जा दिया गया है। हिंदी को लेकर अक्सर राजनीति होती रही हैं, यही कारण रहा है हिंदी को आधिकारिक रूप से राष्ट्रभाषा का दर्जा अभी तक नहीं मिला। जबकि करोड़ों हिंदुस्तानियों के मन में अभी भी हिंदी राष्ट्रभाषा के रूप में उनके दिलों में दर्ज है।

हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों को लेकर  अब फिल्मी सितारे  (filmi actor) इस पर घमासान कर रहे हैं। आपको बता दें कि हिंदी का अर्थशास्त्र (Hindi economical sector) बहुत बड़ा है क्योंकि हिंदी दुनिया की तीसरी बड़ी भाषाओं (the third language most spoken by people in Hindi) के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है। ऐसे में अगर हिंदी की पहचान भारत में विशेष रूप से नहीं होती है तो यह भारत के लिए बहुत बड़ी क्षति (loss) होगी। इन्हीं विवादों और हिंदी राष्ट्रभाषा क्यों नहींट्रेडिंग न्यूज़ (trading news Hindi national language) में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि हिंदी राष्ट्रभाषा (why not become Hindi national language in India) क्यों नहीं बन पाई।

हिंदी राष्ट्रभाषा क्यों नहीं बन पाई? (Why not become Hindi national language in India what is the behind reason)

हमारे देश में अनेक भाषाएं हैं, इसकी दुहाई देकर कभी भी किसी एक राष्ट्रभाषा के तौर पर किसी भाषा को यह दर्जा नहीं दिया गया है। आपको बता दें कि 14 सितंबर, 1949 को हिंदी को राजभाषा (Hindi is the rajbhasha only) का दर्जा दिया गया है न कि राष्ट्रभाषा (National language is not Hindi) का। हिंदी भी दूसरी भाषाओं की तरह एक राजभाषा है।  हिंदी जानने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है (the largest number of  people know in Hindi)  लोग इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा अपने दिलों में देते हैं।

हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के हिमायती थे महात्मा गांधी

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की वकालत सन 1918 में की थी। अंग्रेजी के जानकार और भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कई पुस्तकें अंग्रेजी में लिखी है, उन्होंने भी हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की बात कही थी।

जहां उत्तर भारत के लोग हिंदी और उर्दू को मिलाकर राष्ट्रभाषा घोषित करने के पक्षधर थे लेकिन उस समय विभाजन की त्रासदी ने इस पर भी लोगों को एकमत नहीं होने दिया।

 इधर दक्षिण भारत लीडर किसी भी हालत में हिंदी या हिंदुस्तानी भाषा को राष्ट्रभाषा (national language) का दर्जा देने के लिए तैयार नहीं थे। भाषा को लेकर एकमत न होने के कारण हिंदी को राष्ट्रभाषा (Indian national language) नहीं बनाया गया। अखंड भारत की संकल्पना के चलते हिंदी को राष्ट्रभाषा नहीं बनाया गया क्योंकि कई राज्य भाषाओं के आधार पर खुद को बटवारा करने में आमादा थे।

आजादी मिले अभी थोड़ा समय हुआ था ऐसे में भाषा विवाद के कारण अखंड भारत का सपना भी अधूरा रह जाने की स्थिति उत्पन्न हो रही थी इसलिए विद्वानों ने माना कि कुछ समय बाद हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाना चाहिए। हालांकि यह समय आज तक कभी नहीं आया और हिंदी राष्ट्रभाषा (Hindi rashtrabhasha) नहीं बल्कि क्षेत्रीय भाषाओं की तरह एक राजभाषा है।

लेकिन ताज्जुब की बात है कि क्षेत्रीय भाषाओं और हिंदी भाषाओं में अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व धीरे धीरे बढ़ता चला गया।  लेकिन आपको ताज्जुब होगा कि ना हिंदी भाषा और ना ही क्षेत्रीय भाषा बल्कि अंग्रेजी का वर्चस्व इन 50 सालों में बहुत तेजी से बढ़ गया।

हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं के मुकाबले खड़ी है अंग्रेजी

हम भारतीयों की हिंदी और क्षेत्रीय भाषाएं तो हाशिये पर चली गई लेकिन न्यायपालिका (Judiciary system) चिकित्सा (medical)  और केंद्र सरकार (central government) की भाषाएं अंग्रेजी में हो गई, जिससे आम आदमी का प्रतिनिधित्व और उसके विचार को एक तरह से कुचल दिया गया। 

Internet की बढ़ती हुई भाषा हिंदी

आज जब एंटरटेनमेंट और इंटरनेट की दुनिया में किसी भाषा की वर्चस्व की बात होती है तो निसंदेह हिंदी भी बहुत तेजी से उभरती हुई भाषा है जिसमें यूट्यूब ट्विटर और फेसबुक में हिंदी दूसरे नंबर की भाषा पूरी दुनिया में बनने जा रही है ऐसे में अगर हम हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं देते हैं तो हमारे देश की एक प्रतिनिधित्व नेशनल लैंग्वेज (national language) होना भी जरूरी है इस पर कोई भी राजनीतिक संगठन  कदम उठाने से पीछे हटती है।  इसके साथ हायर एजुकेशन में भी अंग्रेजी (the important of the English language in education why) का वर्चस्व बहुत तेजी से बढ़ रहा है।

Education in Hindi बहुत जरूरी

 कुछ संगठनों का कहना है कि इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई में हिंदी को अनिवार्य किया जाए। अंग्रेजी को अगर छोड़ दे तो पूरे भारत की भारतीय भाषाओं में संपर्क भाषा के रूप में हिंदी को मान्यता मिली हुई है या मान्यता भले लोगों के बीच में हो, लेकिन हिंदी का वर्चस्व आज भी बना हुआ जिसे हम नकार नहीं सकते हैं।

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