प्रभु ‘श्रीराम’ शब्द उच्चारण मात्र से जीवन धन्य हो जाता है। जीवन में नई ऊर्जा का संचार हृदय में होने लगता है। आइए जानें रामचंद्र जी के विभिन्न पक्षों के बारे में जिनसे हम शिक्षाएं लेकर स्वयं को समृद्ध बना सकते हैं। हमारे प्रभु श्रीराम का जीवन आदर्श, मर्यादा, विनम्रता और प्रबंधन के प्रतीक है। श्रीराम के व्यक्तित्व से मनुष्य ज्ञान की अनेक बातें सीख सकते हैैं। श्रीविष्णु के अवतार प्रभु श्रीराम जी का जीवन असाधारण व्यक्तित्व का है। उनका जीवन आदर्शों व संघर्षों से युक्त है। यदि युवा पीढ़ी राम के आदर्श को अपनाते हैं तो वे सर्वश्रेष्ठ मनुष्य होकर जीवन के प्रत्येक लक्ष्य को सरलता से प्राप्त कर सकते हैं। रामचंद्र के जीवन के विभिन्न आयाम हैं, जैसे- प्रभु श्रीराम एक आदर्श पुत्र ही नहीं अपितु आदर्श पति और भाई भी हैं। लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना करने वाले श्रेष्ठ नरेश के रूप में भी प्रतिस्थापित हैं। उनके रामराज्य(Ramrajya) में लोकतांत्रिक मूल्यों को स्थापित करने की अवधारणा है। यहां नर-नारी, जात-पात, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब का कोई भेद नहीं है। रामराज्य में न्याय, सहिष्णुता, राष्ट्रप्रेम, मानव-प्रेम, विकास, शांति-सौहार्द, धर्म-संस्कृति, प्रकृति-रक्षा, संस्कार, मूल्यों और अनुशासन के मू्ल्य विद्यमान हैं। एक आदर्श लोकतांत्रिक साम्राज्य की सभी संकल्पना रामराज्य(Ramrajya) में ही साकार होती है।
राम के अनुपम जीवन से कई शिक्षाएं और प्रबंध कौशल सीखा जा सकता है। वर्तमान युवा पीढ़ी राम जी के आदर्श जीवन से शिक्षा लेकर स्वयं के जीवन को उज्ज्वल बना सकती है। आइए इस श्रृंखला में प्रभु श्रीराम जी के जीवन के विभिन्न पक्षों से मिलने वाली शिक्षाएं तथा प्रबंधन कुशलता ज्ञान को समझें और इसे अपने जीवन में आत्मसात करें।
सहनशील तथा धैर्य
श्रीराम के जीवन से सहनशीलता और धैर्य का विशेष गुण हमें प्राप्त होता है। कभी-कभी हमारे जीवन में विषम परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती है, तब हमें सहनशील और धैर्य के गुणों के माध्यम से विषम समस्या के समाधान के लिए सही दिशा में विचार और विमर्श कर सकते हैं। श्रीराम जी के जीवन में भी अनेक बार सहनशीलता तथा धैर्य की परीक्षा लेने वाला समय आया। उन्होंने इन परिस्थितियों में सहनशील होकर धैर्य का परिचय दिया। यह दृष्टांत उनके व्यक्तित्व के इस पहलू को प्रकट करता है, जब माता कैकेई की आज्ञा के अनुसार उन्होंने 14 वर्ष का वनवास से सहर्ष स्वीकार किया। यह उनकी सहनशीलता और धैर्य के गुण की पराकाष्ठता है कि उन्होंने 14 वर्ष के वनवास के समय एक वनवासी के रूप में जीवन व्यतीत किया। सीता हरण के पश्चात उन्होंने धैर्य का परिचय देते हुए, उनकी खोज के लिए एक अभियान बनाया। इसी श्रृंखला में उन्होंने श्रीलंका में प्रस्थान करने के लिए समुद्र पर एक सेतु का निर्माण कराया। सेतु-निर्माण हेतु उच्चस्तर की नेतृत्व क्षमता, कुशलता और प्रबंधन के गुणों की आवश्यकता होती है। इन परिस्थितियों में प्रभु श्रीरामचंद्र जी ने धैर्य तथा सहनशीलता को आत्मसात किया।
सहायता और दया
सहायता और दया एक ऐसा गुण है, जिसके बिना मनुष्य अधूरा है। इसलिए मनुष्य के अंदर मनुष्यता की भावना होनी चाहिए। यह सीख श्रीराम जी के जीवन से हम सीख सकते हैं। उन्होंने अपने सानिध्य में आए हुए सभी जनों को महत्व दिया और उनकी सहायता की। अपनी सेना में उन्होंने पशु, मानव और दानव सभी को समान अवसर दिया।
सुग्रीव अपने सगे भाई बाली से पीड़ित थे। सच्चे मित्र की भांति उन्होंने सुग्रीव की सहायता किया। उन्होंने अत्याचारी बाली का वध करके सुग्रीव को राजपाट की शक्ति और सुख प्रदान किया। उन्होंने प्रत्येक जाति-वर्ग के जन से मित्रता किया। अपने राज्य के नाविक केवट को हृदय से लगाया। उन्हें मान-सम्मान दिया। इस प्रकार से रामजी का जीवन दया और करुणा से युक्त सभी के लिए समर्पित रहा है।
श्रीराम ने राक्षस जाति में उत्पन्न हुए विभीषण को भी संरक्षण दिया, क्योंकि विभीषण सत्य का साथ देने वाला मनुष्य था इसलिए प्रभु श्रीरामजी ने उन्हें श्रीलंका का अधिपत्य देकर उन्हें मान-सम्मान से अलंकृत किया। यदि आप गहन दृष्टि से श्रीराम के व्यक्तित्व पर विचार करें तो आपको ज्ञात होता है कि वह सभी की सहायता करने वाले एक दयालु मनुष्य के रूप में हमारा मार्गदर्शन करते हैं।
सर्वश्रेष्ठ प्रबंधक के रूप में प्रभु श्रीराम
एक कुशल प्रबंधक के गुण से युक्त श्रीराम सबको अपने साथ लेकर चलने वाले एक नेतृत्वकर्ता के रूप में हैं, उनके जीवन के अनेक पहलुओं से हम सीख सकते हैं।
एक सर्वश्रेष्ठ नेतृत्वकर्ता एक कुशल प्रबंधक भी होता है। रामचंद्र जी के जीवन से प्रबंधन-कला और नेतृत्व-गुण हम सीख सकते हैं। माता सीता जी की खोज में श्रीरामचंद्र जी योजनाबद्ध कुशलता से आगे बढ़ रहे थे तब उन्होंने सुग्रीव को अपनी सहायता के लिए सहमत किया लेकिन सुग्रीव निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे थे, उनका राजपाट बाली के हाथों में था। बाली बलशाली था। सुग्रीव उन्हें कदापि हरा नहीं सकते थे लेकिन रामचंद्र जी अपने कुशल नेतृत्व के माध्यम से सुग्रीव को बाली से युद्ध करने के लिए राजी किया और बाली का वध करके सुग्रीव को राजपाट दिलाया। उपकार के बदले में सुग्रीव ने अपनी सेना श्रीराम जी की सहायता के लिए प्रदान कर दिया।
रामचंद्र जी कुशल प्रबंधक की तरह सेना और सुग्रीव के सभी साथियों का नेतृत्व किया। एक अच्छे प्रबंधक की भांति उन्होंने सभी के गुणों और क्षमता के अनुसार कार्य प्रदान किया। श्रीराम एक प्रबंधक के रूप में हमें यह सीख देते हैं कि उत्साह और संवर्धन के बल पर हम बड़ी-सी बड़ी सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
श्रीलंका तक पहुंचने के लिए समुद्र को पार करने का विकल्प खोजना पड़ा तो उन्होंने नल व नील की योग्यता पर विश्वास किया।
उनके बारे में जो जानकारी उन्होंने अपनी सेना और प्रमुख जनों से प्राप्त की वे एक प्रबंधक की कुशलता को दर्शाता है। रामचंद्र जी योग्यता और साहस अवेहलना कभी नहीं करते थे। सभी की सलाह और विचार को प्रमुखता देते थे और सभी के मत के अनुसार ही निर्णय लेते थे। यह प्रबंधन का सर्वश्रेष्ठ गुण है। जबकि आज के प्रबंधक इन गुणों से हीन है। अर्थात आज के प्रबंधकों को सफलतापूर्वक लक्ष्य प्राप्त करने के लिए श्रीराम के प्रबंधन गुणों को अपनाना चाहिए।
पत्थरों से सेतु बनवाने की प्रक्रिया को उत्साहपूर्वक शुरू कराना एवं सभी व्यक्तियों के योग्यता अनुसार कार्य का विभाजन करना इत्यादि हमें सिखाता है कि श्रीरामचंद्र के जीवन से हम सफलता को प्राप्त करने के लिए प्रबंधकीय- कुशलता एवं नेतृत्व के गुण अपना सकते हैं।
रामचंद्र जी के जीवन के अनेक पहलू हैं। एक न्याय प्रिय राजा के रूप में न्याय करते हुए हमें सीख देते हैं कि कभी किसी के साथ पक्षपात नहीं करना चाहिए। अतः उन्होंने परम मित्र सुग्रीव और विभीषण की सहायता किया। राजपाठ करते समय सदैव मर्यादा का पालन किया।
एक कुशल नेतृत्वकर्ता सभी प्रकार के संबंधों का निर्वाहन भली-भांति करता है। संबंधों के निर्वहन में श्रीरामचंद्र में यह गुण परिलक्षित होता है, जैसे- राजा, स्वामी, भाई, मित्र, पुत्र के रूप में उन्होंने अपने सभी कर्तव्यों का निर्वहन किया।
सफलता प्राप्त करने के लिए संयम, मर्यादा और संस्कार- ये महत्वपूर्ण बातें अपने जीवन में हम उतार सकते हैं।
विष्णु के अवतार श्रीरामचंद्र जी पल भर में अपनी सारी समस्याओं का निदान कर सकते थे लेकिन मनुष्य रूप में जन्म लेने के नियम और दायित्व का उन्होंने पालन किया। इसलिए चमत्कार नहीं दिखाया। वह चाहते तो पत्नी सीता की खोज में दर-दर न भटकते अपितु एक ही क्षण में श्रीलंका प्रस्थान करके रावण का एक ही तीर से सर्वनाश कर देतें; मनुष्य के रूप में अवतार लेने वाले विष्णु के रूप में श्रीरामचंद्र शिक्षा देने के लिए उन्होंने साहस, पराक्रम, कर्तव्य, मर्यादा, प्रेम का पालन करके सशक्त जीवन जीने का एक उदाहरण प्रस्तुत किया है, मनुष्य सब कुछ प्राप्त कर सकता है; बस! धैर्य, प्रबंधन और कुशलता होना चाहिए।
14 वर्ष के वनवास के समय वे एक साधारण वनवासी मनुष्य की भांति जीवन जी रहे थे। उसी समय उनकी पत्नी का हरण हो जाता है। इस परिस्थिति में वे विचलित नहीं हुए अपितु अपनी कुशलता और अपने पराक्रम पर उन्हें आत्मविश्वास था। इन विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने योजना बनाकर सीता की खोज के लिए दक्षिण दिशा की ओर बढ़ना आरंभ किया। हनुमान जी से भेंट हुई और सुग्रीव की सहायता से कुशल नेतृत्व करते हुए श्रीरामचंद्र जी दक्षिण के समुद्र तट पर पहुंचते हैं। यहां सेनाओं का मनोबल बढ़ाते हुए सीता की खोज के लिए सभी रणनीति पर विचार करते हैं।
माता सीता की उपस्थिति की सूचना प्राप्त करने के लिए
हनुमान जी को श्रीलंका भेजकर रावण के बारे में सूचना प्राप्त करना कुशल नीति को दर्शाता है। श्रीरामचंद्र जी युद्ध के पक्ष में नहीं है क्योंकि उन्हें शांति प्रिय है परंतु जब रावण के कुकर्म के माध्यम से अधर्म तथा असत्य का साम्राज्य चारों ओर फैलने लगा तब श्री रामचंद्र ने धर्म तथा सत्य स्थापना करने के लिए उन्होंने युद्ध का मार्ग अपनाया।
सेना का कुशल नेतृत्व और प्रबंधन करते हुए श्रीराम ने रावण की विशाल सेना को पराजित किया। इससे ज्ञात होता है कि वे एक संवेदनशील व्यक्तित्व हैं, जो युद्ध के पक्ष में नहीं है परन्तु प्रत्येक संभावनाओं पर विचार-विमर्श करने के पश्चात ही युद्ध के मार्ग का चुनाव किया। कहने का तात्पर्य यह है कि जब युद्ध ही एकमात्र मार्ग हो तो वह अवश्यंभावी हो जाता है।
राजपाठ की लालसा उनमें नहीं थी इसलिए श्रीलंका का अधिपत्य विभीषण को प्रदान किया। इस प्रकार श्रीलंका को एक सुयोग्य राजा प्राप्त हो गया।
मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम जी का जीवन संघर्षमय है। उनके जीवन के प्रत्येक क्षण से अनेक शिक्षाएं आत्मसात कर सकते हैं।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम करुणानिधि के सागर हैं। उन्होंने अपनी सौतेली माता कैकई को दुखी नहीं किया इसलिए पिता के वचनों का पालन किया। इस प्रकार श्रीरामचंद्र के जीवन से त्याग और समर्पण की शिक्षा हमें मिलती है।
रामराज्य(Ramrajya) की स्थापना करने के पश्चात नागरिकों के हित में तथा राज्य की सुख-समृद्धि के लिए उन्होंने अनेक कार्य किए हैं। उनके राज्य में कोई असहाय एवं दुखी नहीं था। सभी नागरिकों को मान-सम्मान और जीविका साधन उपलब्ध थे। इस कारण से उनके राज्य में कोई भी निर्धन नहीं था। व्यापारीगण भयमुक्त होकर व्यापार करते थे एवं किसान प्रसन्न थे क्योंकि उन्हें अपने कर्म का पूर्ण फल धन के रूप में मिलता था। शिक्षा और स्वास्थ्य का स्तर उत्तम था। चोर और डाकू का भय नहीं था। विद्वानजनों का सम्मान और कर्म की पूजा होती थी। स्वर्ग कैसे अतिसुंदर रामराज्य(Ramrajya) था। राम के राज्य में किसी भी तरह का शोषण नहीं होता था। राज्य में हर नागरिक अपने कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व को निभाता था। राज्य में रहने वाला नागरिक बिना भय के अपना जीवन व्यतीत करता था। उस काल में सभी को शिक्षा-दीक्षा, रोगी को चिकित्सा तथा भूखे के लिए भोजन निशुल्क था।
श्री राम का राज्य सर्वश्रेष्ठ राज्य इस धरा में रहा है। आइए! हम रामराज्य(Ramrajya) की स्थापना में सहयोग करें। क्योंकि रामराज्य में बंधुता, समरसता, न्यायप्रियता के तत्व विद्यमान हैं। उन्होंने संपूर्ण विश्व को रामराज्य(Ramrajya) की एक संकल्पना प्रदान की है। आइए हम सब मिलकर रामराज्य(Ramrajya) की स्थापना के लिए अग्रसर होकर इस दिशा में सार्थक कदम उठाएं। रामराज की छत्रछाया में प्रत्येक नागरिक आनंद का जीवन व्यतीत करें।