गौतम बुद्ध व बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांत….

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Baudh Dharm Ke Pramukh Siddhant

Gautam Buddha Ke Siddhant | Baudh Dharm Ke Pramukh Siddhant – बौद्ध धर्म को समझने के लिए इस धर्म के मुख्य सिद्धांतों को समझना बहुत जरूरी हैं। गौतम बुद्ध द्वारा स्थापित बौद्ध धर्म व्यवहार, आदर्श और बेहतर मानव जीवन की ओर अग्रसर रहता हैं। गौतम बुद्ध ने चार प्रमुख सिद्धांत दिये जिस पर समस्त बौद्ध धर्म आधारित हैं। इन चारों सिद्धांतो को समझना बहुत आसान हैं। यह मानव जीवन से जुड़ी बहुत ही आम बातें हैं जिनके पीछे छिपे गूढ़ रहस्यों को हम कभी समझ नहीं पाते। यह चार सत्य इस प्रकार हैं-

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चार आर्य सत्य (Four Aryan Truth)

1-जन्म दुखदायी होता हैं, बुढ़ापा दुःखदायी होता हैं, बीमारी दुःखदायी होती है, मृत्यु दुःखदायी होती है यहां तक की वेदना, रोना, चित्त की उदासीनता एवं निराशा यह सभी दुःखदायी होती हैं। बुरी वस्तुओं का संबंध भी दुःख देता हैं। व्यक्ति जो चाहता हैं उसका न मिल पाना भी दुःख का एक कारण होता है। संक्षेप में ‘लग्न के पांचों खंड’ जन्म, बुढ़ापा, रोग, मृत्यु और अभिलाषक की अपूर्णता दुःखदायी होती है।

2-हे संतो। पीड़ा का कारण इसी ‘उदार सत्य’ में निहित है। कामना- जिससे दुनिया में फिर जन्म होता है, जिसमें इधर-उधर थोड़ा आनंद मिल जाता है- जौसे भोग कामना, दुनिया में रहने की कामना आदि भी अंत में दुःखदायी होती हैं।

दुःखों का अंत संभव हैः कई बार मनुष्य अपने दुःखों से इतना परेशान हो जाता है कि आत्म हत्या जैसे कदम भी उठा लेता हैं। मनुष्य को यह समझना चाहिए कि उसके दुःखों का अंत संभव हैं।

4-दुःखों का निवारण का मार्गः अष्टांगिक मार्ग ही मनुष्य के समस्त दुःखों के निवारण का मार्ग हैं। इस मार्ग पर चल मनुष्य अपने समस्त दुःखों से पार पा सकता हैं।

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आर्य अष्टांग मार्ग (Arya Ashtanga Marg)

बौद्ध धर्म के अनुसार दुखों के निवारण का मार्ग अष्टांग मार्ग है जो आठ प्रमुख कार्य भी कहे जा सकते हैं। बौद्ध धर्म के अनुसार मनुष्य को इन मार्गों का अनुसरण करना चाहिए:

1. सम्यक या उचित दृष्टि
2. पूर्ण संकल्प
3. उचित वचन
4. उचित कर्म
5. सम्यक जीविका
6. पूर्ण प्रयास
7. उचित स्मृति
8. सम्यक समाधि

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बुद्ध ने तीन मूल बातें बताई हैं इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए-

1-संसार में जो कुछ भी दिखाई देता हैं यह सब अस्थायी और शीघ्र नष्ट होना वाला है।

2-जो कुछ दिख रहा है उसमें दुःख छिपा हैं।

3-इनमें से किसी में स्थायी आत्मा नहीं है, सभी नष्ट होंगे। जब सभी वस्तुएं नष्ट होंने वाली हैं, तब इनके फंदे में क्यों फंसा जाए? तपस्या तथा उपवास करने से इनसे छुटकारा नहीं मिल सकता। छुटकारे की जड़ तो मन है। मन ही मूल और महामंत्र हैं। उसको इन सांसारिक विषयों से खींचकर साफ और निर्मल कर दो, तो मार्ग स्वंय स्पष्ट हो जायेगा। राग और कामना(झूठा प्रेम व लालच) न रहने से तुम्हारे बंधन स्वंय टूट जायंगे।

धर्म का सीधा रास्ता यही हैं कि साफ मन से काम करना चाहिए, शुद्ध हृदय से बोलना, शुद्ध चित्त रखना चाहिए।

कार्य, वचन तथा विचार की शुद्धता के लिए ये दस अज्ञाएँ माननी चाहिए-

  1. किसी की हत्या न करना
  2. चोरी न करना
  3. दुराचार न करना
  4. झूठ न बोलना
  5. दूसरों की निंदा न करना
  6. दूसरों का दोष न निकालना
  7. अपवित्र भाषण न करना
  8. लालच न करना
  9. दूसरों से घृणा न करना
  10. अज्ञान से बचना।

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