नालंदा विश्वविद्यालय के महान आचार्य चाणक्य द्वारा लगभग 2400 वर्ष पूर्व लिखा गया “चाणक्य नीति” यह ग्रंथ आज भी उतना ही प्रभावशाली है जितना उस समय रहा होगा। चाणक्य नीति में कुल 17 अध्याय है । आज इस पोस्ट में चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के बारे में जानकारी देने जा रहा हूं।
चाणक्य नीति( Chanakya Neeti in Hindi) – प्रथम अध्याय (First Chapter)
1-पृथ्वी, अन्तरिक्ष एवं धु-तीनों लोकों के स्वामी सर्वशक्तिमान्, सर्वव्यापक, परमेश्वर को शीश झुकाकर प्रणाम करके वेददादि अनेक शास्त्रों से चुनकर राजनीति का ग्रंथ कहूंगा।
2-श्रेष्ठ मनुष्य, उत्तम जन इस राजनीति समुच्चय को विधिवत् पढकर वेद मनुस्मृति आदि धर्मशास्त्रों में प्रसिद्ध कार्य औल अकार्य, कर्तव्य और अकर्तव्य तथा पुण्य और पाप, भले तथा बुरे कार्य को ठीक ठाक जानता है।
3- लोगो की हित कामना से मै यहां उस शास्त्र को कहूँगा, जिसके जान लेने से मनुष्य सब कुछ जान लेने वाला सा हो जाता है।
4-मुर्ख छात्रों को पढाने, दृष्ट स्त्री का भरण पोषण करने से और दुःखी जनों के साथ व्यवहार करने से बुद्धिमान पुरुष भी दुःखी होता है। कहने का मतलब यह है मूर्ख शिष्य को भली बात के लिए प्रेरित नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार दुष्ट आचरण वाली स्त्री का संग करना भी अनुचित है और दुःखी व्यक्तियों के पास उठने बैठने से ज्ञानवान् पुरुष को भी दुःख उठाना पढता है।
5-जिस व्यक्ति की स्त्री दुष्ट हो, जिसके मित्र नीच यानि छल करने वाला हो और नौकर चाकर जबाब देने वालें हों और जिस घर में सांप निवास करता हो , ऐसे घर में रहने वाला व्यक्ति निश्चय ही मृत्यु के करीब रहता है। अर्थात ऐसे व्यक्ति की मृत्यु किसी भी समय हो सकती है।
6-मनुष्यों के विपत्ति के लिए धन बचाना चाहिए और स्त्री की रक्षा के लिए धन खर्च कर देना चाहिए और यदि अपनी रक्षा के लिए इन दोनों की जरूरत पढ जाये तो इनका बलिदान कर देना चाहिए।
7-बुरे समय से बचने के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए लेकिन धन का संचय कर बुरे समय के प्रति निश्चिंत नहीं हो जाना चाहिए, क्योंकि धन बुरे समय में रक्षा नहीं कर सकता, धन तो पता नहीं कब चला जाये। बुरे समय के लिए सूझबूझ पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।
8-जिस देश उस व्यक्ति का सम्मान नहीं, आजीविका के लिए साधन न हों, जहां उसका परिवार यानि बन्धु-बान्धव व मित्र भी न हों, उस देश में कभी भी नहीं रहना चाहिए।
9-जिस देश में धनी- मनी व्यापारी, वेद्ज्ञ ब्राह्मण, शासन व्यवस्था में निपुण राजा, सिचाई अथवा जल की आपूर्ति और रोगों से रक्षा के लिए वैध न हों, अर्थात जहां यह पांचो सुविधायें प्राप्त न हों वहां एक भी दिन नहीं ठहरना चाहिए।
10-जहां आजीविका, व्यापार, दण्डमय, लोकलाज, चतुरता और दान देने की प्रवृति यानी यह पांच बातें न हों वहां एक पल भी नहीं ठहरना चाहिए।
11-नौकरों को कार्य करने, बन्ध-बन्धवों को दुःख पड़ने, संकट-आपत्ति के समय मित्र को और धन के नष्ट होने पर स्त्री को परखना चाहिए यानि उनके कार्य और उस स्थिति पर आपसे कैसा व्यवहार किया इसको परखना चाहिए।
12-व्यक्ति का किसी असाध्य रोग से घिर जाने पर दुःखी होने पर, अकाल पड़ जाने पर, शत्रु या भय उपस्थित हो जने पर, अभियोग से घिर जाने पर और परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाने पर साथ निभाने वाले व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में बन्धु कहलाता है।
13-जो अपने निश्चित पदार्थों को छोड़कर अनिश्चित पदार्थों को पाने की चेष्टा में उसके पीछे भागता रहता है, तो उसके अनिश्चित का मिलना तो दूर रहा, उसके निश्चित भी नष्ट हो जाते है। कहने का मतलब यह है कि अनिश्चितता के पीछे दौड़ना अच्छा नहीं है।
14-बुद्धिमान व्यक्ति को श्रेष्ट कुल की कुरूप कन्या से भी विवाह कर लेना चाहिए वहीं नीच कुल की भले ही सुन्दर कन्या हो उससे कभी भी विवाह नहीं करना चाहिए।
15-लम्बे बाल वाले हिंसक पशुओं, निदयों, बड़े-बड़े सींग वाले पशुओं, शस्त्राधारियों, स्त्रियों और राजकुलों पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए।
16-यदि विष से अमृत, गन्दे स्थान से सोना, नीच कुल वाले पुरष से विद्या और दुष्ट कुल से स्त्री रत्न को ले लेना चाहिए।
17-स्त्रियों का भोजन दोगुना, लज्जा पुरूषों से चार गुना, साहस छः गुना और काम वासना( सेक्स पावर) पुरूषों से चार गुना ज्यादा होती है। यानि की पुरूषों की तुलना में नारी कई स्थानों पर उच्च होती है।