What is Surya Uttarayan in hindi – ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य 30-31 दिनों में राशि परिवर्तन करता है। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना गया है। मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में होता है अर्थात भारत से दूर ( भारत उत्तरी गोलार्द्ध में है)। इस समय सूर्य दक्षिणायन ( surya dakshinayan ) होता है। इसी कारण यहां रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं व गर्मी का मौसम शुरू हो जाता है। इसे सूर्य उत्तरायान ( Surya uttarayan ) कहते हैं।
शुभ होता है सूर्य का उत्तरायण होना -Auspicious is the Surya uttarayan
धर्म ग्रंथों के अनुसार सूर्य एक सौर वर्ष (365 दिन) में क्रमानुसार 12 राशियों में भ्रमण करता है। जब सूर्य किसी राशि में प्रवेश करता है तो उसे संक्रांति कहते हैं। जब सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करता है तो मकर संक्रांति का पर्व ( Makar sankranti Festival) मनाया जाता है। सूर्य का मकर राशि में जाना बहुत ही शुभ माना जाता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति से ही देवताओं का दिन शुरू होता है, जिसे उत्तरायण कहते हैं।
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इसलिए उत्तरायण को कहते हैं देवताओं का दिन
धर्मग्रंथों में उत्तरायण को देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा गया है। शास्त्रों में उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए ये समय जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि के लिए विशेष है। मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। ऐसा जानकर संपूर्ण भारत में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना व पूजा कर, उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाती है।
सूर्य की गति से संबंधित होने के कारण यह पर्व हमारे जीवन में गति, नव चेतना, नव उत्साह और नव स्फूर्ति का प्रतीक है क्योंकि यही वो कारक है जिनसे हमें जीवन में सफलता मिलती है। उत्तरायण का महत्व इसी तथ्य से स्पष्ट होता है कि हमारे ऋषि-मुनियों ने इस अवसर को अत्यंत शुभ और पवित्र माना है। उपनिषदों में इस पर्व को ‘देव दान’ भी कहा गया है।
भीष्म ने किया था सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार
उत्तरायण को हिंदू धर्म में बहुत ही पवित्र समय माना गया है। महाभारत में भी कई बार उत्तरायण शब्द का उल्लेख आया है। सूर्य के उत्तरायण होने का महत्व इसी कथा से स्पष्ट है कि बाणों की शैया पर लेटे भीष्म पितामह अपनी मृत्यु को उस समय तक टालते रहे, जब तक कि सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण नहीं हो गया। सूर्य के उत्तरायण होने के बाद ही उन्होंने अपने प्राण त्यागे।
स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि जब सूर्यदेव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनर्जन्म लेना पड़ता है।
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बहुत शानदार जानकारी
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