Vat Savitri Vrat Puja Vidhi, Katha and Importance in Hindi – हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण करवाचौथ व्रत की तरह माना जाता है। वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है, लेकिन निर्णयामृतादि के अनुसार यह व्रत ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को करने का विधान हैं। हमारे देश में वट सावित्री का व्रत (Vat Savitri Vrat) महिलाएं अमावस्या के दिन रखती हैं। इस व्रत पर सभी सुहागन स्त्रियां वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ा का पूजन करती हैं। इसलिए इसे वरलगाई भी कहा जाता है। यह वही व्रत है जिसको रखकर सावित्री ने यमराज को हरा कर अपने पति सत्यवान के प्राण बचाए थे।
वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat 2018 dates )
वट सावित्री का व्रत वर्ष 2018 में 15 मई दिन मंगलवार को रखा जायेगा। अमावस्या तिथि का आरंभ 14 मई 2018, सोमवार को 19.46 बजे से होगा जिसका समापन 15 मई 2018 , बुधवार को 17.17 बजे होगा।
वट सावित्री व्रत विधि ( Vat Savitri Vrat Vidhi )
इस दिन प्रातः काल खड़े होकर घर की अच्छे से साफ-सफाई कर नित्य क्रिया से निवृत होकर स्नानादि करें। इसके पश्चात गंगा जल या पवित्रि जल को पूरे घर में छिड़कें। इसके बाद एक बांस की टोकरी लें उसमें सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति को स्थापित करें, ब्रह्मा जी के बाएं भाग में सावित्री की मूर्ति की स्थापना करनी चाहिए।
इसी तरीके से दूसरी टोकरी लें उसमें सत्यवान और सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें। इन दोनों टोकरियों को वट व्रक्ष के नीचे ले जाकर रकें। इसके पश्चात ब्रह्मा एवं सावित्री का पूजन करें।
सावित्री को अर्घ्य इस मंत्र से दें-
“अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।
पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते॥”
इसके पश्चात सावित्री और तत्यवान की पूजा करके वट यानि वरगद की जड़ में पानी दें। पूजन के समय जल, मौली, रोली,सूत, धूप, ने आदि का इस्तेमाल करना चाहिए। सूत के धागे को वट वृक्ष पर लपेटकर तीन बार परिक्रमाक कर सावित्री व सत्यवान की कथा सुननी चाहिए। जब पूजन समाप्त हो जाये तो वस्त्र, फल आदि को बांस के पत्तों पर रखकर दान करना चाहिए और चने के प्रसाद का वितरण करना चाहिए।
वट सावित्री व्रत का महत्व- Importance of Vat Savitri Vrat in Hindi
पुराणों के मुताविक इस दिन सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापल ले लिए थे। यही कारण है कि उन्हे सती सावित्री कहा जाता है। यह व्रत विवाहित स्त्रियों के लिए बहुत खास होता हैं जिसे वह अपने पति की लंबी उम्र और सुख समृद्धि के लिए ऱखती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से वैवाहिक जीवन में आने वाले सभी कष्ट और दूःख दर्द दूर हो जाते हैं एवं हमेशा सुख शांति बनी रहती हैं।
वहीं अगर वट व्रक्ष की बात की जाये तो इस वृक्ष का बहुत महत्व होता हैं जिसका अर्थ है बरगद का पेड़। इस वृक्ष पर बहुत सारी शाखाएं लटकी रहती हैं जिन्हे सावित्री देवी का रूप माना जाता है। पुराणों के मुताविक बरगद के पेड़ में त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता हैं। इस कारण इस वृक्ष की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
वट सावित्री व्रत कथा- Vat Savitri Vrat Katha in Hindi
सावित्री का जन्म विशिष्ट परिस्थितियों में हुआ था। माना जाता हैं कि भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए अठारह वर्षों बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसके बाद सावित्रीदेवी ने उन्हें तेजस्वी कन्या के जन्म का वरदान दिया। सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने की वजह से कन्या का नाम सावित्री रखा गया।
राजा की बेटी ने युवावस्था में प्रवेश किया। उसके रूप लावण्य को जो भी देखता उस पर मोहित हो जाता। जब राजा की बहुत कोशिश करने पर भी सावित्री के योग्य कोई वर नहीं मिला तो उन्होंने एक दिन सावित्री से कहा, ‘बेटी! अब तुम विवाह के योग्य हो गई हो इसलिए स्वयं अपने योग्य वर की खोज करो।’
पिता की बात मान कर सावित्री मंत्रियों के साथ यात्रा के लिए निकल गई। कुछ दिनों तक ऋषियों के आश्रमों और तीर्थों में भ्रमण करने के बाद वह राजमहल में लौट आई। इस समय उसके पिता के साथ देवर्षि नारद भी बैठे हुए थे।
उसने उन्हें देख कर प्रणाम किया। राजाअश्वपति ने सावित्री से उसकी यात्रा का समाचार पूछा। सावित्री ने कहा, ‘पिता जी! तपोवन में अपने माता-पिता के साथ निवास कर रहे द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान सर्वथा मेरे योग्य हैं। अत: मैंने मन से उन्हीं को अपना पति चुना है।’
नारद जी सावित्री की बात सुनकर चौंक उठे और बोले, ‘राजन! सावित्री ने बहुत बड़ी भूल कर दी है। सत्यवान के पिता शत्रुओं के द्वारा राज्य से वंचित कर दिए गए हैं, वह वन में तपस्वी जीवन व्यतीत कर रहे हैं, अपनी दृष्टि खो चुके हैं। सबसे बड़ी कमी यह है कि सत्यवान की आयु अब केवल एक वर्ष ही शेष है।’
नारद जी की बात सुनकर राजा अश्वपति व्यग्र हो गए। उन्होंने सावित्री से कहा, ‘बेटी! तुम फिर से यात्रा करो और किसी दूसरे योग्य वर का वरण करो।’ सावित्री सती थी। उसने दृढ़ता से कहा, ‘पिताजी! सत्यवान चाहे अल्पायु हों या दीर्घायु, अब तो वही मेरे पति हैं। जब मैंने एक बार उन्हें अपना पति स्वीकार कर लिया फिर मैं दूसरे पुरुष का वरण कैसे कर सकती हूं?’
सावित्री का निश्चय दृढ़ जानकर महाराज अश्वपति ने उसका विवाह सत्यवान से कर दिया। धीरे-धीरे वह समय भी आ पहुंचा जिसमें सत्यवान की मृत्यु निश्चित थी। सावित्री ने उसके चार दिन पूर्व से ही निराहार व्रत रखना शुरू कर दिया। पति एवं सास-ससुर की आज्ञा से सावित्री भी उस दिन पति के साथ जंगल में फल-फूल और लकड़ी लेने के लिए गई। अचानक वृक्ष से लकड़ी काटते समय सत्यवान के सिर में भयानक दर्द होने लगा और वह पेड़ से नीचे उतरकर पत्नी की गोद में लेट गया।
उस समय सावित्री को लाल वस्त्र पहने भयंकर आकृति वाला एक पुरुष दिखाई पड़ा। वह साक्षात यमराज थे। उन्होंने सावित्री से कहा, ‘तू पतिव्रता है। तेरे पति की आयु समाप्त हो गई है। मैं इसे लेने आया हूं।’ इतना कह कर यमराज ने सत्यवान के शरीर से सूक्ष्म जीव को निकाला और उसे लेकर वे दक्षिण दिशा की ओर चल दिए।
सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल दी। उन्हें आता देख यमराज ने कहा, ‘हे पतिव्रता नारी! पृथ्वी तक ही पत्नी अपने पति का साथ देती है। अब तुम वापस लौट जाओ।’ उनकी इस बात पर सावित्री ने कहा, ‘जहां मेरे पति रहेंगे मुझे उनके साथ रहना है। यही मेरा धर्म है।’
यमराज ने बहुत समझाया लेकिन सावित्री नहीं मानी। पतिव्रता स्त्री के तप और निष्ठा से हारकर यमराज ने कहा की तुम अपने पति के बदले 3 वरदान मांग लो। इस पर सावित्री ने पहले वर में अपने अंधे सास ससुर की आंखे मांगी। यमराज ने कहा एवमस्तु कहा। दूसरे वरदान में उसने अपने पिता के लिए सौ पुत्र मांगे। यमराज ने दूसरा वरदान भी दे दिया। अब तीसरे वरदान की बारी थी। इस बार सावित्री ने अपने लिए सत्यवान से तेजस्वी पुत्र का वरदान मांगा। यमराज एवमस्तु कह कर जाने लगे तो सावित्री ने उन्हें रोकते हुए कहा। पति के बिना पुत्र कैसे संभव होगा। ऐसा कह सावित्री ने यमराज को उलझन में डाल दिया। बाध्य होकर यमराज को सत्यवान को पुनर्जीवित करना पड़ा।
इस प्रकार सावित्री ने सतीत्व के बल पर अपने पति को मृत्यु के मुख से छीन लिया। सावित्री पुन: उसी वट वृक्ष के पास लौट आई। जहां सत्यवान मृत पड़ा था। सत्यवान के मृत शरीर में फिर से संचार हुआ।
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