वामन एकादशी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। जबकि कुछ मतों के अनुसार यह पर्व भद्र पद शुक्ल द्वादशी को वामन द्वादशी या वामन जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस एकादशी को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे- परिवर्तिनी एकादशी (Parivartani Ekadashi), पदमा एकादशी (Padma Ekadashi), जलझूलनी एकादशी (Jal Jhulani Ekadashi) एवं डोल ग्यारस (Dol Ekadashi) आदि। कुछ स्थानों पर ये दिन भगवान श्रीकृष्ण की सूरज पूजा (जन्म के बाद होने वाला मांगिलक कार्यक्रम) के रूप में मनाया जाता है। वामन एकादशी के दिन यज्ञोपवीत से भगवान वामन की प्रतिमा स्थापित कर, अर्ध्य दान करने, फल-फूल अर्पित करने और उपवास आदि करने से व्यक्ति का कल्याण होता है।
एकादशी कब मनाई जाती है
एक अन्य मत के अनुसार भादों मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन यह व्रत किया जाता है। एकादशी तिथि के दिन किया जाने वाला वामन एकादशी व्रत ‘पद्मा एकादशी’ के नाम से भी जाना जाता है। जबकि एक अन्य मत यह कहता है कि एकादशी व्रत होने के कारण इस व्रत को एकादशी तिथि में ही किया जाना चाहिए। इस दिन वामन एकादशी व्रत किया जा सकता है।[1]
व्रत विधि
वामन एकादशी के दिन व्रती को अपने नित्य कार्यों से निवृत्त होने के बाद भगवान वामन का पूजन करना चाहिए और अर्ध्य देते समय निम्न मंत्र का प्रयोग करना चाहिए-
देवेश्चराय देवाय, देव संभूति कारिणे।
प्रभवे सर्व देवानां वामनाय नमो नम:।।
इसकी पूजा करने का एक दूसरा तरीका भी है। पूजा के बाद 52 पेड़े और 52 दक्षिणा रखकर भोग लगाया जाता है। फिर एक टोकरी में एक कटोरी चावल, एक कटोरी शरबत, एक कटोरी चीनी, एक कटोरी दही लेकर ब्राह्मण को दान दी जाती है। इसी दिन व्रत का उद्यापन भी करना चाहिए। उध्यापन में ब्राह्माणों को एक छाता व खड़ाऊं तथा दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। इस व्रत को करने से स्वर्ग कि प्राप्ति होती है।
महत्त्व
धर्म ग्रंथों के अनुसार, परिवर्तिनी एकादशी पर व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। पापियों के पाप नाश के लिए इससे बढ़कर कोई उपाय नहीं है। जो मनुष्य इस एकादशी को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं। इस व्रत के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर से कहा है कि जो इस दिन कमलनयन भगवान का कमल से पूजन करते हैं, वे अवश्य भगवान के समीप जाते हैं। जिसने भाद्रपद शुक्ल एकादशी को व्रत और पूजन किया, उसने ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया। अत: हरिवासर अर्थात एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस दिन भगवान करवट लेते हैं, इसलिए इसको परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं।
वामन एकादशी व्रत कथा
युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! भाद्रपद शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि तथा इसका माहात्म्य कृपा करके कहिए। तब भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि इस पुण्य, स्वर्ग और मोक्ष को देने वाली तथा सब पापों का नाश करने वाली, उत्तम वामन एकादशी का माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूँ तुम ध्यानपूर्वक सुनो।
यह एकादशी जयंती एकादशी भी कहलाती है। इसका यज्ञ करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। पापियों के पाप नाश करने के लिए इससे बढ़कर कोई उपाय नहीं। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन मेरी (वामन रूप की) पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं। अत: मोक्ष की इच्छा करने वाले मनुष्य इस व्रत को अवश्य करें।
जो कमलनयन भगवान का कमल से पूजन करते हैं, वे अवश्य भगवान के समीप जाते हैं। जिसने भाद्रपद शुक्ल एकादशी को व्रत और पूजन किया, उसने ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया। अत: हरिवासर अर्थात एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस दिन भगवान करवट लेते हैं, इसलिए इसको परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं।
भगवान के वचन सुनकर युधिष्ठिर बोले कि भगवान! मुझे अतिसंदेह हो रहा है कि आप किस प्रकार सोते और करवट लेते हैं तथा किस तरह राजा बलि बलि को बाँधा और वामन रूप रखकर क्या-क्या लीलाएँ कीं? चातुर्मास के व्रत की क्या विधि है तथा आपके शयन करने पर मनुष्य का क्या कर्तव्य है। सो आप मुझसे विस्तार से बताइए।
श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन! अब आप सब पापों को नष्ट करने वाली कथा का श्रवण करें। त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य था। वह मेरा परम भक्त था। विविध प्रकार के वेद सूक्तों से मेरा पूजन किया करता था और नित्य ही ब्राह्मणों का पूजन तथा यज्ञ के आयोजन करता था, लेकिन इंद्र से द्वेष के कारण उसने इंद्रलोक तथा सभी देवताओं को जीत लिया