संकटमोचन भगवान श्री राम के परमभक्त हनुमान जी जिन्हे वायु पुत्र, केसरी नंदन, श्री बालाजी, सूर्य शिष्य आदि अनेकों नाम से जाना जाता है।
सम्पूर्ण भारत ही नहीं वल्कि कई अन्य देशो में पवनपुत्र हनुमान जी को अनेको रूपों में पूजा जाता है। वहीं राजस्थान राज्य के दौसा जिले के दो पहाड़ियों के बीच स्थित भगवान हनुमान जी को समर्पित मेंहदीपुर बालाजी का मंदिर भारत के अनेकों रहस्यमयी मंदिरों में से एक है और यह पवित्र स्थान अपनी चमत्कारी शक्तियों के लिए जाना जाता है।
इस लेख में मेंहदीपुर बालाजी मंदिर का इतिहास, मेहंदीपुर बालाजी के पीछे की कहानी क्या है और मेंहदीपुर बालाजी मंदिर से जुड़ी कई अन्य चमत्कारी घटनाओं के साथ और भी कई अन्य प्रमुख पहलुओं के बारे में जानेंगे।
मेहंदीपुर बालाजी के पीछे की कहानी क्या है? (Mehandipur Balaji History/Story in Hindi)
बालाजी कैसे प्रकट हुए? मेरे प्रिय पाठको मेहंदीपुर बालाजी के मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है, अगर पूजा पाठ की बात की जाये तो एक ही परिवार के महंत की 12वी पीढ़ी इस रहस्यमयी बालाजी मंदिर की सेवा कर रही है।
अगर वालाजी मंदिर के इतिहास की बात करें तो श्री गणेशपुरी जी महाराज इस धाम के प्रथम महंत थे। उस वक्त मंदिर के स्थान पर बहुत ही घना और घना जंगल हुआ करता था। इस जगह बहुत ही खतरनाक जंगली जानवरों के साथ चोर डाकुंओं का भी अनाजाना लगा रहता था।
एक रात की बात है कि महंत श्री गणेशपुरी जी महाराज को एक स्वप्न आया और वो वहां से उठकर कहीं जाने लगे, और वहां से चलते चलते एक बहुत ही अजीब रहस्यमयी जगह पहुंच गये, जहां उन्होंने देखा कि हज़ारों दीपक एक साथ जल रहे है और हाथी घोड़ों के साथ एक फ़ौज चली आ रही है। इस पर उन्होंने उस जगह की तीन प्रदक्षिणायें की और उनके प्रमुख ने उतर कर वहां अपना शीश झुकाया। इसके उपरांत वह जहां से आये थे वहीं चले गये।
यह नजारा देखकर महंत जी बहुत घबरा गये और वह अपने घर की तरफ वापस चले गये। इस घटना के उपरांत उनके मन में तमाम तरह के विचार आ रहे थे, उन्हे कुछ समझ नहीं आ रहा था। इसके बाद जैसे ही उनको नींद आयी इसके बाद उन्हे एक स्वप्न दिखा जिसमें तीन मूर्तियां और विशाल मंदिर दिखाई पड़ा, इसका साथ ही उन्हे एक आवाज भी सुनाई दी जिसमें उनसे उठने के लिये कहा गया और उनकी सेवा का भार ग्रहण करने को कहा गया, साथ ही उस आवाज में अपनी लीला का विस्तार करने के बारे में बात कही गयी। लेकिन इस पर भी जब महंत द्वारा इस बात के ऊपर ध्यान नहीं दिया गया तो उन्होंने स्वंय दर्शन देकर इस बारे में आदेश दिया।
इस पर महंत जी ने अपने गांव वालों से इस बारे में बात की और सभी की सहायता से उस स्थान की खुदाई की गयी, जिस पर वहां हनुमान जी की मूर्ति निकली। इसके बाद वहां एक छोटे से मंदिर की स्थापना की गयी और वहां प्रसाद आदि का वितरण किया गया। लेकिन कुछ लोगों ने इस बात पर विश्वास नहीं किया जिस पर प्रतिमा वापस से जमीन में समा गया थी, लेकिन फिर सब लोगों के माफी मांगने पर वह वापस से वहां स्थापित हो गयी। तब से लेकर अब तक वहां अनवरत पूजा अर्चना जारी है और आज वहां एक विशाल भव्य मंदिर है।
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर की चमत्कारी शक्तियां
मेहंदीपुर बालाजी के चमत्कारों से जुड़ी हजारों कहानियां है, उन्हीं में से एक कहानी ब्रिटिश काल की भी है, माना जाता है कि 1910 ई0 ब्रिटिश काल में एक बार बालाजी महाराज ने स्वतः अपने पुराने चोला को त्याग दिया था, जिसके बाद गांव के सभी भक्तगण इस चोले को गंगा नहीं में प्रवाहित करने निकल पड़ते है। वह जैसे ही उस गांव के नजदीकी रेलवे स्टेशन मंडावर रेलवे स्टेशन पहुंचे तो वहां पर स्टेशन मास्टर ने चोले को लगेज करने के लिए कहा। तो जब उस चोले का बजन लिया गया तो कभी वजन बढ़ जाता और कभी घट जाता। इस पर स्टेशन मास्टर को समझ ही नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है।
और लास्ट में स्टेशन मास्टर को बालाजी महाराज के चमत्कार का एहसास हुआ तो चोला को विना लगेज के ही ले जाने दिया।
मेंहदीपुर बालाजी मंदिर का महत्व
मेंहदीपुर बालाजी मंदिर के धार्मिक महत्व के साथ यहां भूत-प्रेत और बुरी आत्माओं को जो लोगों के अंदर प्रवेश करे हुए है उनको भगाने के लिए भी जाना जाता है।
जब आप यहां पहुंचोगे तो देखोगे कि यहां बुरी आत्माओं को जैसे थर्ड डिग्री दी जा रही हो, यहां ज्यादातर वहीं लोग आते है, जो बुरी आत्माओं से ग्रसित रोग होते है। यहां पहुंचने पर आपको एक बहुत ही डरानवा और दूसरा बहुत ही सुकुन पहुंचाने वाला माहौल मिलेगा, लोग बालाजी, हनुमान जी के नाम का जयकारा लगाते हुए मिल जायेंगे।
लोग यहां पहुंचकर मंदिर में अपनी मनोकामाओं की अर्जी लगाते है, ऐसा माना जाता है कि यहां से कोई खाली हाथ नहीं लौटा जिसने जो मांगा उसकी वह मनोकामना पूर्ण हुई।
बालाजी मंदिर की क्या खासियत है?
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर की खासियत की बात करें तो इस मंदिर में हनुमान जी की बाल रूप मूर्ति स्थापित है, भगवान हनुमान जी को लेकर एक मान्यता है कि जो भी हनुमान जी का पूजा अर्चना करता है, उसके पास भूत पिसाच नहीं आते और हनुमान जी सभी प्रकार के संकटो को नष्ट कर देते है, इसी मान्यता के चलते जो लोग मानसिक व्यथाओं से ग्रस्त है वह मेंहदीपुर बालाजी के इस मंदिर के दर्शन करने जाते है।
मेंहदीपुर बालाजी मंदिर की बनावट कैसी है
मेंहदीपुर बालाजी मंदिर की बनावट की झलक राजस्थान की संस्कृति को दर्शाता है। बालाजी के इस मंदिर की बनावट के लिए परंपरागत राजपूत वास्तुकला का प्रयोग किया गया है। यह मंदिर चार प्रांगणो में विभाजित है जिसके पहले प्रांगण में भैरव बाबा और दूसरे में बालाजी की प्रतिमा स्थापित है।
इसके साथ ही तीसरे प्रांगण में दुष्ट आत्माओं के सरदार प्रेतराज का प्रांगण है। इस मंदिर के साथ इसके आसपास भी बहुत ही प्यारा नजारा दिखता है। इन सभी बातों को ध्यान में रखकर हजारों लोग दर्शन करने आते है।
बालाजी मंदिर में किन-किन देवताओं की पूजा होती है
मेंहदीपुर बालाजी मंदिर में हनुमानजी की पूजा होती है, ये तो सभी जानते होंगे, लेकिन इसके अलावा दो अन्य दोवताओं की भी पूजा होती है, ये शायद कम ही लोग जानते होंगे।
यदि आप नहीं जानते है तो आपको बता दें कि मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में हनुमान जी के अतिरिक्त श्री प्रेतराज सरकार और श्री भैरव भगवान की भी मूर्तियां स्थापित है, और इनकी भी यहां पूजा होती है।
श्री प्रेतराज सरकार
प्रिय पाठको आपको बता दें कि इस मंदिर में प्रेतराज सरकार का स्थान दंडाधिकारी के रूप में है। इनके विग्रह पर चोला चढ़ाया जाता है। ये मान्यता है कि जो भी बुरी आत्माएं होती है उनको दंड देने का काम प्रेतराज सरकार का ही है।
मेंहदीपुर बालाजी मंदिर में ही बालाजी के सहायक देवता के रूप में प्रेतराज सरकार की भी पूजा की जाती है, इनकी अलग से पूजा नहीं की जाती है।
मान्यता है कि प्रेतराज सरकार का नाम सुनते ही बुरी आत्मायें डर से भाग जाती है।
श्री भैरव देव
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में हनुमान जी एवं प्रेतराज सरकार के अलावा तीसरे देवता के रूप में भगवान भैरव देव भी विराजमान है। भगवान भैरवनाथ को शिवजी का ही अवतार माना जाता है।
इस मंदिर में भैरव देव की चतुर्भुजी प्रतिमा स्थापित है जिनके एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे में डमरू, तीसरे हाथ में खप्पर और चौथे हाथ में प्रजापति ब्रह्मा का पांचवा कटा हुआ शीश है।
यह लाल वस्त्र धारण किये हुए एवं इनके पूरे शरीर पर भस्म लगी हुई है। भगवान भैरव को बालाजी महाराज के सेवा का कोतवाला माना जाता है, इन्हे प्रसाद के रूप में उड़द की दाल से बनी खीर का भोग लगाया जाता है एवं भक्तजन इनकी प्रतिमा पर चमेली के सुगंध युक्त तिल के तेल में सिंदूर घोलकर लपेटते है।
मेंहदीपुर बालाजी मन्दिर से जुड़े रीति रिवाज
मेंहदीपुर बालाजी मंदिर में आस्था रखने वाले भक्तजनों की धारणा बहुत ही ज्यादा गहरी है। वह ऐसा मानते है कि इस मंदिर में भगवान को लगाये गये भोग को प्रसाद स्वरूप जो भी खाते है, उनके सभी कष्ट दूर हो जाते है।
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में इन चीजों को करने से बचना चाहिए
मेंहदीपुर बालाजी मंदिर जाने के बारे में आप सोच रहे है तो आपको इन बातों को जरूर जान लेना चाहिए कि यहां कुछ काम है जो वर्जित है, जिन्हे करने से बचना चाहिए।
भक्तगणों यदि आप मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में पहलीबार जा रहे है तो आपको जो वहां पंडा या पुजारी मिलेंगे वो आपसे रूपये मांगेगे और उसके वदले वह आपसे भभूति या पवित्र जल देने की बात कहेंगे तो इनसे आपको बचना है क्योंकि मंदिर में ही दान पेटी लगी हुआ है वहां आप दान करेंगे तो भभूति और पवित्र जल आपको फ्री में ही मिल जायेगा।
मेंहदीपुर बालाजी के मंदिर में आपको विचलित करने वाले बहुत से दृश्य देखने को मिल जायेंगे, यहां जो लोग आते है उनमें मुख्यतः भूत प्रेत से पीड़ित आते है और उनका उपचार वहां चलता रहता है तो यहां आप वीडियो आदि नहीं बना सकते है, यदि ऐसा आप करते है तो हो सकता है कि वहां आपका फोन या कैमरा जब्त कर लिया जाये तो मोबाइल व कैमरा लेकर न जायें तो ज्यादा अच्छा रहेगा।
भक्तगणों बालाजी मंदिर में आने से पहले तामसिक भोजन(प्याज, लहसुन, नॉनवेज आदि) खाने से बचना चाहिए क्योंकि हिंदू धर्म में इस प्रकार के भोजन को राक्षसों आदि का भोजन माना जाता है। तो इस प्रकार के तामसिक भोजन को खाने से बचना चाहिए और यहां तक दर्शन करने के बाद जब आप वापस जाते है तो इसके बाद भी कम से कम 11 दिन तक इस प्रकार के तामसिक भोजन को खाने से परहेज जरूर करें।
बालाजी मंदिर में जो भी भक्जन मंदिर में आरती करते है उनका आरती के दौरान पीछे मुड़कर देखना मना है, यहां तक कि जब आप दर्शन कर लेते है इसके उपरांत जब आप घर जाने लगते है तब भी मुड़कर पीछे नहीं देखना चाहिए। क्योंकि मान्यता है कि अगर आप ऐसा नहीं करते है तो बुरी आत्माओं का साया उन पर चढ़ जाता है।
भक्तजन ध्यान रखें कि बालाजी मंदिर में आने पर वह ना तो किसी को कुछ तें और ना वह किसी व्यक्ति से कुछ लें। इस मंदिर के मुख्य मंदिर से मिलने वाले प्रसाद को ही ग्रहण करें और ध्यान रहे कि आपको जो भी प्रसाद दिया जाता है उसे मंदिर परिसर में ही खाना है। बचे हुए प्रसाद को वापस घर नहीं ले जाना है। अगर प्रसाद बच जाता है तो उसे आप दिर में ही छोड़ सकते है इसके अलावा अन्य कोई भी मीठी या खुश्बूदार वस्त को घर ले जाने से बचना चाहिए।
निष्कर्ष-
भक्तजन इस लेख में भारत के राजस्थान राज्य में स्थित एक बहुत ही प्रसिद मंदिर और धार्मिक स्थल मेंहदीपुर बालाजी का इतिहास ( Mehandipur Balaji History in Hindi) इस मंदिर के चमत्कार आदि एवं अन्य कई बातों के बारे में जाना है।
हमें उम्मीद है कि आपको यह जानकारी पसंद जरूर आयी होगी।