महाराणा प्रताप की जीवनीः महाराणा प्रताप जिन्हे लोग वीरता और दृढ़ प्रण के लिए याद करते हैं उनका पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया था। उन्होंने अपने जीवन में गुलामी कभी वर्दास्त नहीं की इसके लिए उन्हे मुगलों से कई बार युद्ध भी करना पड़ा। आज हम यहां भारत का वीर पुत्र महाराणा प्रताप के जीवन और इतिहास के बारे में जानेंगे।
महाराणा प्रताप का जीवन परिचय
महाराणा प्रताप का जन्म 09 मई 1540 को उदयपुर मेवाड़ के राजा के यहां हुआ था। महाराणा प्रताप के पिता का नाम उदय सिंह एवं उनकी माता का नाम जयवंता बाई था जो पाली के सोनगरा अखएराजा की बेटी थी। इसके अतिरिक्त उनके जन्मस्थान को लेकर दो राय हैं। पहली राय यह है की महाराणा उदय सिंह एवं जयवंताबाई का विवाह कुंभलगढ़ महल में हुआ था इसलिए महाराणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआ। वहीं दूसरी धारणा यह है कि उनका जन्म पाली के राजमहलों में हुआ था। महाराणा प्रताप के बचपन का नाम कीका था।
महाराणा प्रताप की पत्नी कौन थी?
महाराणा प्रताप ने अपने जीवनकाल में 11 शादियां की थी। उनकी पत्नियों के नाम व उनसे प्राप्त पुत्र व पुत्रियों के नाम नम्न प्रकार हैं।
- महारानी अजाब्दे पंवार :- अमरसिंह और भगवानदास
- अमरबाई राठौर :- नत्था
- शहमति बाई हाडा :-पुरा
- अलमदेबाई चौहान:- जसवंत सिंह
- रत्नावती बाई परमार :-माल,गज,क्लिंगु
- लखाबाई :- रायभाना
- जसोबाई चौहान :-कल्याणदास
- चंपाबाई जंथी :- कल्ला, सनवालदास और दुर्जन सिंह
- सोलनखिनीपुर बाई :- साशा और गोपाल
- फूलबाई राठौर :-चंदा और शिखा
- खीचर आशाबाई :- हत्थी और राम सिंह
महाराणा प्रताप का इतिहास (हिस्ट्री ऑफ महाराणा प्रताप)
महाराणा प्रताप बहुत साहसी एवं निर्भीक योद्धा थे। उन्होंने सन 1576 के हल्दीघांटी युद्ध में 500 भील जाति के लोगों को साथ लेकर आमेर सरदार राजा मानसिंह के करीब 80,000 की जनबल सेना का सामना किया, इस युद्ध में भील सरदा राणा पूंजा का योगदान भी सराहनीय था। इस युद्ध में शत्रु सेना से जब महाराणा प्रताप पूरी तरह घिर चुके थे तब झाला मानसिंह ने अपने प्राणों का बलिदान देते हुए महाराणा प्रताप को युद्ध भूमि छोड़ने के लिए बोलाथा।
यह युद्ध कितना भीषण चला इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि यह युद्ध केवल एक दिन चला लेकिन इसमें मरने वाले लोगों की संख्या 17000 के करीब थी।
अकबर मेवाड़ को जीतना चाहता था इसके लिए उसने सभी तरह के प्रयत्न किये जिससे महाराणा प्रताप की स्थिति बहुत चिंताजनक हो गयी थी लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया। मुगल सम्राट अकबर बिना युद्ध के महाराणा प्रताप को अपने अधीन लाने का प्रयत्न कर रहा था इसके लिए उसने प्रताप को समझाने के लिए चार राजदूत भी नियुक्त किये थे, लेकिन राणा प्रताप ने चारों को निराश किया। इस प्रकार से राणा प्रताप ने मुगलों की अधीनता अस्वीकर की जिसके परिणामस्वरूप हल्दीघांटी का ऐतिहासिक युद्ध हुआ था।
हल्दीघाटी का युद्ध
हल्दीगांटी का युद्ध 18 जून 1576 ई0 में मेवाड़ एवं मुगलों के बीच हुआ था। इस युद्ध में मेवाड़ की सेना की कमान महाराणा प्रताप ने अपने हाथ में ली थी जिसमें भील सरदार राणा पूंजा भी थे। सबसे रोचक तथ्य यह है कि इस युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लड़ने वाले एकमात्र मुस्लिम सरदार हकीम खाँ सूरी थे।
इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया। इस युद्ध में राणा पूंजा भील का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इतना ही नहीं इस भीषण युद्ध में बींदा के झालामान ने अपने प्राणों की बलि देते हुए राणा प्रताप के प्राणों की रक्षा की वहीं ग्वालियर के राजा रामशाह तोमर भी अपने तीनों पुत्र कुँवर शालीवाहन, कुँवर भवानी सिंह व कुँवर प्रताप सिंह एवं अपने नाती बलभद्र सिंह एवं सैकड़ों वीर तोमर राजपूत योद्धाओं सहित सभी मारे गये थे।
इतिहासकारों के मुताविक इस युद्ध में आधिकारिक रूप से विजयी किसी की नहीं हुई थी, लेकिन देखा जाये तो विजयी राणा प्रताप की हुई थी। इस युद्ध में अकबर की विशालकाय सेना के वाबजूद कुछ थोड़ी संख्या में राजपूतों ने अच्छा मोर्चा संभाला और यह युद्ध पूरा एक दिन चला, जिसमें अकबर की सेना को मजबूर होकर पीछे हटना पड़ा था।
महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे हुई?
महाराणा प्रताप की मौत का कोई पुख्ता सुबूत तो नही मिल पाया था लेकिन कहा गया है कि चवण में 56 की उम्र में शिकार करते समय एक दुर्घटना होने से उनकी मौत हो गयी
महाराणा प्रताप का भाला
शूरवीर महाराणा प्रताप का भाला, तलवार और कवच का वजन 208 किलो थे जिसे लेकर वह चेतक पर हवा की गति से रण भूमि में चलते थे। उनके भाले का वजन 81 किलो था जिसे एक हाथ में लेकर ही वह बहुत ही फुर्ती से अचूक वार करते थे। महाराणा प्रातप की वीरता और उनके शौर्य ने उन्हें महान बना दिया।
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