लाउडस्पीकर का आविष्कार किसने किया और कब हुआ था? लाउडस्पीकर को हिंदी में क्या कहते हैं, ध्वनि प्रदूषण क्या है?

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Loudspeaker Ka Avishkar Kisne Kiya
Loudspeaker Ka Avishkar Kisne Kiya

Loudspeaker Ka Avishkar Kisne Kiya: राजनीतिक गलियारों में इन दिनों लाउडस्पीकर चर्चा में है। ध्वनि प्रदूषण (sound pollution) और लाउडस्पीकर को लेकर यह विवाद धार्मिक रंग भी लेने लगा है। जबकि साउंड पोलूशन एक बहुत बड़ी समस्या है। दरअसल आपके मन में यह सवाल जरूर उठा रहा होगा कि  लाउडस्पीकर का आविष्कार कैसे (invention of loudspeaker) और कब हुआ? इसके साथ यह भी जानना आप चाहेंगे कि लाउडस्पीकर को हिंदी में क्या कहा जाता है (what is the meaning of loudspeaker in Hindi) क्योंकि लाउडस्पीकर शब्द अंग्रेजी का है। जिसका अर्थ क्या होता है, इन सब की जानकारी इस आर्टिकल में आप हासिल कर पाएंगे, इसे पूरा पढ़ें-

लाउडस्पीकर को हिंदी में क्या कहते हैं?

आपको बता दें कि लाउडस्पीकर (loudspeaker in Hindi) सब अंग्रेजी का है और इसका अर्थ होता है ध्वनि  की तीव्रता (sound intensity) को बढ़ाकर बजने वाला मशीन लाउडस्पीकर कहलाता। loudspeaker को हिंदी में ध्वनि विस्तारक यंत्र (dhwani vistarak Yantra) कहते हैं। जब माइक के माध्यम से कुछ बोला जाता है तो लाउडस्पीकर यानी ध्वनि विस्तारक यंत्र उसे एक उच्च आवृत्ति (high frequency) यानी तेज ध्वनि करता है और इसी कारण से ध्वनि प्रदूषण (sound pollution) आधुनिक युग में एक बड़ी समस्या बन गई है।

ध्वनि प्रदूषण और लाउडस्पीकर sound pollution and loudspeaker

आपस में बातचीत करने की ध्वनि 50 से 60 डेसिबल होती है।  अगर इससे ज्यादा तेज बोलते हैं तो एक तरह का ध्वनि प्रदूषण ही होता है।

प्रकृति ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित (green tree or control the sound pollution)  करने का अपना तरीका अपनाती है। हरे भरे पेड़ पौधे ध्वनि की आवृत्ति को सोख (Absorb frequency of sound ) लेते इसलिए ध्वनि प्रदूषण नहीं होता है। लेकिन शहरों में बड़ी-बड़ी इमारतें बनने के कारण यहां ध्वनि प्रदूषण सबसे अधिक है।

 कोलकाता जैसे शहरों में दिन में ध्वनि की तीव्रता 85 डेसीबल से अधिक है। वहां शहरों में रहने वाले लोग ध्वनि प्रदूषण का शिकार हो रहे हैं। लाउडस्पीकर से निकली हुई ध्वनि ही खतरनाक होती है।  लाउडस्पीकर की तीव्रता इतनी अधिक होती है कि लोग सौ से डेढ़ सौ डेसीबल पर लाउडस्पीकर बजाते हैं जिस कारण से ध्वनि प्रदूषण आसपास के क्षेत्रों में फैल जाता है।

इंसान ने तरक्की के साथ प्रदूषण को भी लौटा दिया

18 वीं शताब्दी के बाद जैसे जैसे इंसान ने कई तरह के आविष्कार किया और उसकी जीवन शैली बदलती गई। अपने जीवन शैली में उसने आराम और सुविधा को ध्यान में रखते हुए जीवन जीना शुरु किया लेकिन प्रकृति के साथ उसने खिलवाड़ भी शुरू कर दिया।

हरे भरे पेड़ और फसल काटे जाने लगे, लोग पेट्रोल की गाड़ियां  दौड़ाने लगे, हवाई जहाज से सफर होने लगा, ट्रेनें चलने लगी, बिजली बनने लगा ऊर्जा के ट्रेडिशनल सोर्स ले वायु प्रदूषण बढ़ा दिया और इससे शोर ने ध्वनि प्रदूषण और ढेर सारी फसलों को जल्दी से उगाने के चक्कर में केमिकल फर्टिलाइजर ने धरती को बंजर बना दिया। 

इस तरह से धरती पर प्रदूषण का जन्म होने लगा। प्रदूषण का शाब्दिक अर्थ होता है-पर्यावरण में गंदगी फैलाना।  वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण इन सब प्रदूषण के कारण धरती का वातावरण दूषित हो रहा है।

Dhwani Pradushan ध्वनि प्रदूषण

सुप्रीम कोर्ट के फैसले में भी ध्वनि प्रदूषण पर चिंता व्यक्त की गई है। आजकल लाउडस्पीकर का इस्तेमाल तेज ध्वनि के लिए किया जाता है जिससे कि आवाज गूंजती और ध्वनि प्रदूषण का कारण बनता है। शहरों में यह समस्या बहुत तेजी से बढ़ रही है क्योंकि स्कूटर, कार, ट्रक ट्रेन, हवाई जहाज बड़े-बड़े मशीन फैक्ट्री और लाउडस्पीकर ध्वनि प्रदूषण में अपना योगदान दे रहे हैं। ध्वनि प्रदूषण एक बहुत बड़ी समस्या है इसलिए पूरे देश मेंध्वनि प्रदूषण पर रोकथाम के लिए सरकार पहल कर रही है।

लाउडस्पीकर का आविष्कार कब हुआ invention of loudspeaker

  आज से लगभग 161 साल पहले लाउडस्पीकर का आविष्कार हुआ था। जोहान फिलिप रीस  एक प्रयोग किया था उसने टेलीफोन में लाउडस्पीकर इसलिए जोड़ा ताकि उसकी आवाज और टोन अच्छी तरीके से सुनाई दे। आज से 146 साल पहले  टेलीफोन का आविष्कार करने वाले ग्राहम बेल ने 1876 में लाउडस्पीकर का पेटेंट कराया। loudspeaker  में सुधार होता गया और अर्नस्ट सिमेंस ने लाउडस्पीकर को एक अलग रूप देने का काम किया।

लाउडस्पीकर के अविष्कार में सुधार

आगे चलकर लाउडस्पीकर में बदलाव हुआ और वर्तमान रूप लाउडस्पीकर का तब आया जब पहली बार रेडियो में लाउडस्पीकर लगाया गया। लाउडस्पीकर यानी ध्वनि विस्तारक यंत्र अपने वर्तमान रूप में तब आया जब इसको इतना शक्तिशाली बनाया गया एक चीज का आवाज दूर तक पहुंचे। साल 1924 में चेस्टर डब्ल्यू राइस और एटीएंडटी के एडवर्ड डब्ल्यू केलॉग ने रेडियो में पहली बार लाउडस्पीकर लगाया था।

सन 1943 में आल्टिक लैनसिंग ने डुपलेक्स ड्राइवर्स और 604 स्पीकर्स बनाया। इसे ‘वॉयस ऑफ द थियेटर’ के नाम जाना जाता है।  जिसके बाद लाउडस्पीकर के कई रूप बदले  जिसमें एडगर विलचर ने साल 1954 में एकॉस्टिक सस्पेंशन  का आविष्कार किया और म्यूजिक प्लेयर वाले  loudspeaker  बनना शुरू हो गया।

Loudspeaker कैसे काम करता है?

 लाउडस्पीकर  आवाज को दूर तक तेज फ्रिकवेंसी में भेजता है। लाउडस्पीकर विद्युत तरंगों को आवाज में बदल देता है। इस तरह करता है कि लाउडस्पीकर विद्युत तरंग के रूप में अलग अलग फ्रीक्वेंसी  को रिसीव करता है। फिर उसे उसी फ्रीक्वेंसी में  ध्वनि तरंगों के रूप में बदलता है।

जैसा कि आप जानते हैं कि वाइब्रेशन (कम्पन्न) से ही आवाज पैदा होती है। उसी वाइब्रेशन को पैदा करने के लिए लाउडस्पीकर के अंदर एक चुंबक होता है, जिसके चारों तरफ एक जाली होती है। लाउडस्पीकर पर लगे चुंबक प्लेट  पर जब इलेक्ट्रिक वेव (Electric wave) टकराती है। यह जाली वाइब्रेट करता है (जाली हिलने लगती है), जिससे कंपन्न यानी वाइब्रेशन होता है। वाइब्रेशन से आवाज पैदा होती है। लाउडस्पीकर में एंपलीफायर लगा होता है, जो आवाज को एमप्लीफाई कर देता यानी बाहर करता है। जिससे आवाज दूर तक जाती है।

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