नमस्कार दोस्तो, आज हम आपके लिए बहुत ही सुन्दर Desh Bhakti Kavita in Hindi में लेकर आये है, यह खूबसूरत Patriotic Poems in Hindi कविता आपको बहुत पसंद आयेगी। इस कविता का उपयोग आप देशभक्ति के किसी भी प्रोग्राम में कर सकते है। देश भक्ति कविता वंदन तुम स्वीकारो माँ बहुत ही सुन्दर है, कविता का सारांश भी हमने यहां बताया है उसे भी आप पढ़ सकते है।
शेर-
देश के लिए प्यार है तो जताया करो, किसी का इंतजार मत करो…
गर्व से बोलों “जय हिंद”, अभिमान से कहो हम भारतीय हैं हम…!!
Desh Bhakti Kavita- देश भक्ति कविता- वंदन तुम स्वीकारो माँ। हिंदी कविता
जय-जय, जय-जय- भारत जननी,
वंदन तुम स्वीकारो माँ।
उच्च हिमालय शुभ्र मुकुट है,
गंगा-यमुना हार नवल।
गोदा-कृष्णा-कावेरी भी,
प्यार लुटाती है अविरल।
चरण पकड़ सागर गुण गाता,
गायन यह स्वीकारो माँ।
जय-जय, जय-जय- भारत जननी,
वंदन तुम स्वीकारो माँ।
हरे खेत-खलिहान, घने वन,
दिशा-दिशा में दीप जले।
निशि-दिन कर्म-निरत जन-जीवन,
कर्मों से ही भाग्य फले।
यही कर्म है तेरी पूजा,
पूजन यह स्वीकारो माँ।
जय-जय, जय-जय- भारत जननी,
वंदन तुम स्वीकारो माँ।
तुच्छ स्वार्थ से ऊपर उठकर,
नित नव मंगल-कार्य करें।
मिल-जुल कर हम रहें प्रेम से,
भेदभाव सब दूर करें।
तन-मन-धन सब तुमको अर्पण,
अर्पण यह स्वाकारो माँ।
जय-जय, जय-जय- भारत जननी,
वंदन तुम स्वीकारो माँ।
-सुरेश पंत
Desh Bhakti Kavita- देश भक्ति कविता- वंदन तुम स्वीकारो माँ का हिंदी में सारांश
कवि सुरेश पंत भारत माँ को प्रणाम(नमन) करते हुए कह रहे है कि हमें अपने देश के नैसर्गिक सौंदर्य पर गर्व है।
हिमालय पर्वत मुकुट के समान( स्वच्छ, सफेद बर्फ की चादर) भारत माता के सिर पर सुशोभित है, तो गंगा यमुना नदिया भारत –माता के गले का हार है। इसी प्रकार गोदावरी-कृष्णा-कावेरी नदियाँ भी लगातार जनकल्याण के लिए बह रही हैं।
समुद्र भारत माँ के चरणों को छूते हुए मातृभूमि के गुणों का बखान(गायन) कर रहा है। यह गायन भी आपको अर्पित है मां। हे माँ (मातृभूमि) आफकी सदा ही जय हो। मां आप हमारा वंदन( नमन, प्रणाम) स्वीकार कीजिये।
विशाल खेत-खलिहान और घने जंगल हर दिशा में फैले है। चारों दिशाओं में दीप जले है।
कवि कहते है, कि मनुष्य को दिन-रात परिश्रम करना चाहिए, क्योंकि मानव-जीवन में अच्छे कर्मों से ही व्यक्ति का भाग्य निर्माण होता है और यही अच्छे और सच्चे कर्म ही भारत माँ की सच्ची पूजा है। यह पूजन भी माँ आपको अर्पित है। हे मातृभूमि आपकी जय हो, आप मेरा वंदन स्वीकार कीजिए।
कवि समझा रहे है कि हर व्यक्ति को अपने जीवन में अपने घटिया स्वार्थ की भावना से ऊपर उठकर सबके कल्याण के लिए प्रतिदिन मंगलकारी कार्य करने चाहिए अर्थात देश की प्रगति के लिए समर्पित भाव से कार्य करना चाहिए। आपसी भेदभाव दूर करके हमें प्यार से मिलजुलकर रहना चाहिए। हे मातृभूमि हमारा तन-मन-धन सब आपको अर्पण है। हमारा यह अर्पण स्वीकार करों माँ। हे भारत माता आपकी हमेशा जय हो, आप मेरा नमन(प्रणाम) स्वीकार करो।
उम्मीद करते हैं कि यह देशभक्ति की कविताएं (Desh Bhakti Poem in Hindi) पसंद आई होगी।आपको यह कविताओं का संग्रह (Desh Bhakti Kavita Sangrah) कैसा लगा। हमारा फेसबुक पेज लाइक जरूर कर दें।