भाई दूज क्यों मनाते है, कहानी और भाई दूज कब है 2023 में?

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भाई दूज क्यों मनाते है एवं इसकी कहानी और भाई दूज कब है

Bhai Dooj Kab Hai 2023: भाई और बहन का रिश्ता इस संसार में एक मात्र ऐसा रिश्ता होता है जिसमें भाई अपनी बहन को तो बहुत मानते हैं और उनसे प्यार भी करते हैं परन्तु कभी बहन को दिखाते नहीं हैं। हर रिश्ते में लड़ाई होती है उसी तरह भाई बहन का भी प्यार कहां इससे अछूता है इस रिश्ते में भी बहुत लड़ाई होती हैं, परंतु कहते हैं ना जिस रिश्ते में लड़ाई ना हो उस रिश्ते में प्यार कहां होता है। बहन भी अपने भाई को सबसे ज्यादा प्यार करती हैं उनका प्यार अपने भाई के प्रति छिपाए नहीं छिपता।

अगर बहन दुनिया के किसी भी कोने में हो और वह यह जान जाती है कि उसका भाई किसी भी प्रकार की कठिनाई अथवा दिक्कत में है तो वह यथासंभव अपने भाई के पास पहुंचने का प्रयास करती है और भाई की कठिनाई को खत्म करने का भी प्रयत्न करती हैं। भाई बहन का रिश्ता इस संसार में एक ऐसा रिश्ता है जिसका कोई मोल नहीं होता। भाई बहन के रिश्ते का ना कोई आदि है ना कोई अंत है।

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भाई दूज कब मनाया जाता है:-

भाई दूज भी रक्षाबंधन के त्यौहार की तरह ही एक पवित्र त्यौहार होता है, जो कि हिंदुओं के द्वारा मनाया जाता है। यह त्योहार हर वर्ष दिवाली के तीसरे दिन मनाया जाता है अर्थात दीपावली के आखिरी दिन। भाई दूज कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है जबकि दिवाली कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है।

इस दिन बहनें (अगर उनका विवाह हो चुका हो) अपने भाई को अपने घर पर बुलाती हैं और उनका तिलक करती हैं और उनका सम्मान करके भोजन कराती हैं, अगर बहने अविवाहित है तो वह तब भी अपने भाई को तिलक लगाती हैं। भाई की लंबी उम्र की तथा उनके सभी मनोकामना पूर्ण होने की कामना सभी बहने करती हैं। यह पर्व भाई बहन के स्नेह का प्रतीक है। इस पर्व को भ्रात्र द्वितीय के नाम से भी जाना जाता है।

वर्ष 2022 में भाई दूज कब है?

इस साल भाई दूज का त्योहार दो दिन यानी 14 और 15 नवंबर 2023 को मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल द्वितीया तिथि की शुरुआत 14 नवंबर 2023 को दोपहर 02 बजकर 36 से शुरू हो रही है। इसका समापन 15 नवंबर 2023 को दोपहर 01 बजकर 47 पर होगा।

इस वर्ष भाई दूज का त्यौहार 14 नवंबर 2023 को मनाया जाएगा।

भाई दूज से सम्बन्धित पौराणिक कथायें:-

भारत त्यौहारों का देश है अतः भारत में किसी भी त्यौहार के पीछे कुछ न कुछ कथायें प्रचलित होती हैं। इसी सम्बन्ध में श्रीकृष्ण और उनकी बहन सुभद्रा की भी एक कथा प्रचलित है। ऐसा माना जाता है कि श्रीकृष्ण जब नरकासुर का वध करके अपनी बहन से मिलने गये थे, तब सुभद्रा ने अपने भाई को तिलक लगाकर उनकी आरती, पूजन किया और पुष्पगुच्छो से उनका आदर सत्कार किया था। अतः हर वर्ष इसी तिथि को भाई दूज मनाया जाने लगा।

इसी सम्बन्ध में एक कथा और प्रचलित है, पुराणों के अनुसार सूर्य देव की पत्नी जिनका नाम संज्ञा था उन्होंने एक पुत्र तथा एक पुत्री को जन्म दिया जिसमें पुत्र का नाम यमराज तथा पुत्री का नाम यमुना रखा गया। संज्ञा अपने पति सूर्य की किरणों को सहन नहीं कर पा रही थी अतः उन्होंने उत्तरी ध्रुव में छाया के रूप में रहने का फैसला किया और वहीं रहने लगी। जिसके कारण छाया का अपने पुत्र, पुत्री एवं पति से व्यवहार बदल गया।

 अपनी माता के बदले व्यवहार के कारण यमराज चिंतित हो गए और अपनी अलग यमपुरी बसा ली। यमराज का कार्य पापियों को सजा देने का था, यमराज की बहन यमुना से ये सब देखा नहीं जाता था अतः उन्होंने गोलोक अर्थात भगवान विष्णु की शरण ली और वही रहने लगे।

यमराज अपने काम में इतने व्यस्त थे की उन्हें अपनी बहन का ख्याल काफी समय बाद आया और उनको अपनी बहन यमुना की याद सताने लगी। यमराज ने अपने दूतों को आदेश दिया कि उनकी बहन का पता लगाएं। परंतु दूतों ने अथक प्रयास करने के पश्चात भी यमुना का पता नहीं लगा सके। यमराज ने खुद निश्चय किया कि वह अपनी बहन की तलाश करेंगे और उनका यह प्रयास सफल हुआ उनकी बहन उन्हें गोलोक में मिली।

बहन से इतने समय के पश्चात मिलने पर यमराज द्रवित हो उठे। बहन यमुना ने उनका स्वागत सत्कार किया और स्वादिष्ट पकवान बनाकर खिलाएं। जिसके फलस्वरूप यमराज इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने अपनी बहन से वर मांगने को कहा। यमुना के लिए संसार के समस्त प्राणी उनके पुत्र तथा पुत्री जैसे थे अतः वे सभी से ममता और करुणा का भाव रखती थी। अतः उन्होंने वरदान मांगा कि “संसार में जो भी प्राणी मेरे जल में स्नान करें वह यमपुरी ना पहुंचे।” यमराज ने कहा “ऐसा ही होगा।”

जिस तिथि में यमराज अपनी बहन से मिलने गए थे वह कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया थी तभी से भाई दूज को यम द्वितीया के नाम से जाना जाने लगा। अतः तभी से हर वर्ष भाई दूज उसी दिन मनाया जाने लगा।

भाई दूज कैसे मनाया जाता है:-

भाई दूज के दिन विवाहित बहन भाई को अपने घर आने का निमंत्रण देती हैं फिर भाई का आदर सत्कार करके उनको तिलक लगाती हैं और उनके दीर्घायु की कामना करती हैं फिर उन्हें अपने हाथ का बना भोजन परोसती है। इस दिन भाई को यमुना नदी में स्नान करना चाहिए।

अगर बहन अविवाहित है तो भाई को बहन के हाथ का बना भोजन अवश्य करना चाहिए भोजन करने के पश्चात् बहन को उपहार देना चाहिए। उत्तर भारत में बहने अपने भाई को नारियल उपहार स्वरूप देती हैं। अगर सगी बहन न हो तो चाचा, मामा अथवा पिता की बहन की पुत्री के घर जाकर भोजन करना चाहिये तथा यथा सम्भव अपहार देना चाहिये।

भाई दूज को गोवा में, महाराष्ट्र में तथा कर्नाटक में भाई बीज, नेपाल में भाई टीका(क्योंकि तिलक लगाया जाता है, तिलक को टीका भी कहते हैं), बंगाल में भाउ-दीज या भाई-फोटा और मणिपुर में निंगोल चकबा के नाम से भी जाना जाता है।

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