विपक्ष के ज़बरदस्त हंगामों और विरोध के बीच किसानों और कृषि से संबंधित दो अध्यादेशों को राज्यसभा में ध्वनिमत से पारित कर दिया गया है। अब केवल राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के
मुहर लगने की देर है। राज्यसभा में बिल पारित होने के बाद विपक्षियों ने सदन में अपनी नाराजगी जताते हुए में जमकर नारेबाज़ी कि।
किसान नेताओं और विपक्षियों को इस बिल के खिलाफ काफी गुस्सा है, उनके अनुसार इस बिल द्वारा ग़रीब किसानों को काफी नुकसान पहुंचेगा परंतु सरकार का कहना है, कि यह बिल किसानों की भलाई के लिए है।
लेकिन यहाँ सवाल यह उठता है, कि अगर यह बिल किसान की भलाई के लिए है, तो फिर यह विरोध क्यों हो रहा है ??
आइए सबसे पहले जानते हैं कि पुराने बिल में क्या था और उसमे क्या बदलाव हुए हैं ?
1 . कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य 2020
इसके अंतर्गत किसान अपनी फसलों को एपीएमसी (APMC) मंडियों में बेचते हैं, जिसके बदले उन्हें फसल का सही मूल्य दिया जाता है। यहां एपीएमसी का मतलब है (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस एंड लाइव स्टॉक मार्केट कमिटी), वैसी बाजारे या मंडी जहाँ किसान अपने अनाज बेच सकते हैं और ऐसे बाज़ार या मंडी का नियंत्रण राज्य की सरकारें करती हैं।
नए बिल के अनुसार, किसान अपने अनाज की एपीएमसी मंडियों के बाहर की बेच सकते हैं और उनको इसके लिए या उनके खरीदारों को एपीएमसी मंडियों की फीस भी नहीं देनी होगी।
2 . कृषक मूल्य आस्वासन और कृषि सेवा पर करार,2020
इस बिल का मुख्य उद्देश्य है, किसानों की फसलों की निश्चित कीमत दिलवाना। इसके अंतर्गत फसल पैदावार से पहले ही किसानों को किसी व्यापारी से समझौता करना होता है। इस समझौते के अनुसार फसल की गुणवत्ता, खाद का इस्तेमाल कितनी मात्रा में और कैसे करना है, फसल का मूल्य तथा इस प्रक्रिया की पूरी जानकारी पहले ही बात कर लेनी होती है।
इस समझौते के बाद किसान अपनी पैदावार की गई फसलों को अपनी तय की गई कीमतों पर बेचता है और यदि व्यापारी खेती को स्पॉन्सर करता है, तो उसे खेती में लगाने वाले बीज, खद्ध आदि का पूरा खर्च उठाना पड़ेगा, तथा इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए ही फसल की कीमत तय की जाएगी।
नई बिल के अनुसार, व्यापारी को फसल के वितरण के समय ही कीमत का दो तिहाई चुकाना होगा और बाकी कीमत 30 दिनों के अंदर और तो और खेतों से फसल ले जाने की जिम्मेदारी भी व्यापारियों की ही होगी। बिल में इस बात का जिक्र भी किया है, कि यदि कोई एक पक्ष सौदेबाजी तोड़ता है, तो उस पर पेनल्टी लगाई जाएगी।
संक्षेप में कहूं तो, किसान एपीएमसी यानी राज्य सरकार द्वारा संचालित की जाने वाली मंडियों के बाहर भी अपने अनाज को बेच सकते हैं, उन्हें बिचौलियों की समस्या में नहीं फसना पड़ेगा।
किसान अपनी फ़सलों की पैदावार से पहले ही किसी व्यापारियों से सौदेबाजी कर सकेंगे, जिससे उनकी फसल की तय की गई कीमत उन्हें मिल सकेगी।
फिर घूम कर वही सवाल आती है, कि जब सब सही है तो विरोध क्यों??
किसानों के अनुसार किसानों को यहां केवल पहले बिल से समस्या जिसमें कहा गया है, कि वह एपीएमसी मंडियों या बाजारों के बाहर अपने फसल की बिक्री कर सकते हैं। किसानों के अनुसार पहले एपीएमसी मंडियों में कम से कम एक न्यूनतम कीमत तो मिलती थी पर यहां समस्या यह है कि बाहर वह न्यूनतम कीमत मिलेगी या नहीं क्योंकि इस बात को लेकर कोई नियम इस बिल
में नहीं दिए हैं।
हो सकता है, कभी किसी फसल का उत्पादन ज्यादा होने पर व्यापारी फसलों को कम कीमत में बेचने के लिए मजबूर करें। तो उस समय क्या होगा??
पुराने बिल के अनुसार, जो आढतिए (दलाल) अभी एपीएमसी मंडी में फसल खरीदते हैं, उन्हें लाइसेंस लेना होता है मंडी में काम करने के लिए ,जो वेरिफिकेशन के बाद प्राप्त होती है परंतु नए बिल के अनुसार, कोई भी व्यापारी जिसके पास पैन कार्ड है, वह किसान से फसल ले सकते हैं। अब यहां हमें कैसे पता चलेगा कि जिस व्यापारी को हम अपनी फसल बेच रहे हैं वे धोखेबाज है या नहीं ??
किसानों को डर है, कि इस एक्ट के नियम बड़े कंपनी और बड़े व्यापारियों के हितों में हुई है। उनका कहना है कि बड़ी- बड़ी कंपनियां सस्ते दामों पर मार्केट से अनाज ख़रीद कर बड़े-बड़े गोदामों में स्टोर कर लेंगे और जिसे समय आने पर मार्केट में ग्राहकों को ऊंचे-ऊंचे दामों पर बेचेंगे और अधिक मुनाफ़ा कमाएंगे