चाणक्य नीति द्वितीय अध्याय (Seccond Chapter)

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 Chanakya niti second cheptor in Hindi – नालंदा विश्वविद्यालय के महान आचार्य चाणक्य द्वारा लगभग 2400 वर्ष पूर्व लिखा गया “चाणक्य नीति” यह ग्रंथ आज भी उतना ही प्रभावशाली है जितना उस समय रहा होगा। चाणक्य नीति में कुल 17 अध्याय है । आज इस पोस्ट में चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के बारे में जानकारी देने जा रहा हूं।

Chanakya Neeti in Hindi (चाणक्य नीति) – द्वितीय अध्याय (Seccond Chapter)

1: झूठ बोलना, छल-कपट, मूर्खता, अत्यधिक लालच करना, उतावलापन दिखाना, अपवित्रता और दयाहीनता, ये सभी प्रकार के दोष स्त्रियों के स्वाभाविक गुण है।त

2: भोजन करने तथा उसे अच्छी तरह से पचाने की शक्ति हो तथा अच्छा भोजन समय पर प्राप्त होता हो, प्रेम करने के लिए अर्थात रति-सुख प्रदान करने वाली उत्तम स्त्री के साथ संसर्ग हो, खूब सारा धन और उस धन को दान करने का उत्साह हो, ये सभी सुख किसी तपस्या के फल के समान है, अर्थात कठिन साधना के बाद ही प्राप्त होते है।

3: जिसका पुत्र वश में हो, पत्नी उसके अनुसार चलने वाली हो, अर्थात उसकी बात मानने वाली हो, जिसके पास पर्याप्त धन हो, उसके लिए इस संसार में ही स्वर्ग है।

4: पुत्र वे है जो पिता भक्त है। पिता वही है जो बच्चों का पालन-पोषण करता है। मित्र वही है जिसमे पूर्ण विश्वास हो और स्त्री वही है जिससे परिवार को सुख-शांति प्राप्त हो।

5: जो व्यक्ति आपके सामने तो मधुर वचन बोलता हो और पीठ पीछे अर्थात अप्रत्यक्ष रूप से आपके सारे कार्यो में व्यवधान पैदा करता हो, ऐसे मित्र को उस घड़े के समान त्याग देना चाहिए, क्योंकि वह उस घड़े के समान है जिसके ऊपर तो दूध लगा हो लेकिन भीतर विष भरा हो ।

6: बुरे मित्र पर तो विश्वास करना ही नहीं चाहिए साथ ही अपने विश्वासपात्र मित्र पर भी विश्वास नही करना चाहिए क्योंकि कभी नाराज होने पर सम्भवतः आपका विशिष्ट मित्र भी आपके सारे रहस्यों को प्रकट कर सकता है।

7: मन से विचारे गए कार्य को कभी किसी से नहीं कहना चाहिए, अपितु उसे मंत्र की तरह रक्षित करके अपने (सोचे हुए) कार्य को करते रहना चाहिए।

8: मूर्खता दुःखदायक है और यौवन भी कष्टदायक है परंतु इन सबसे बड़ा दुःख दूसरे के घर पर निवास करना है।

9: हर एक पर्वत में मणि नहीं होती और प्रत्येक हाथी के मस्तिष्क पर मोती उत्पन्न नहीं होता है। इसी प्रकार साधु लोग सभी जगह नहीं मिलते और हर एक वन में चंदन के वृक्ष नहीं होते।

10: बुद्धिमान लोगो का कर्तव्य होता है की वे अपनी संतान को अच्छे कार्य-व्यापार में निपुण बनायें क्योंकि नीति के जानकार व सद्व्यवहार वाले व्यक्ति ही कुल में सम्मानित होते है।

11: वह माता पिता अपनी संतान के महाशत्रु है जिन्होंने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दिलाई, क्योंकि ऐसे अनपढ़ बालक सभा के मध्य में उसी प्रकार शोभा नहीं पाते, जैसे हंसो के मध्य में बगुला शोभा नहीं पाता।

12: अत्यधिक लाड़-प्यार से पुत्र और शिष्य गुणहीन हो जाते है और डांटने से गुनी हो जाते है। भाव यही है कि शिष्य और पुत्र को यदि ताड़ना का भय रहेगा तो वे गलत मार्ग पर नहीं जायेंगे।

13: प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह एक श्लोक, आधा श्लोक, श्लोक का एक चरण, उसका आधा अथवा एक अक्षर ही सही या आधा अक्षर का प्रतिदिन अध्ययन कर प्रत्येक दिन को सफल बनाना चाहिए, दिन को व्यर्थ न गंवायें।

14: स्त्री का वियोग, अपने लोगो से प्राप्त वेइज्जती, कर्ज का बंधन, दुष्ट राजा की सेवा, दरिद्रता और अपने प्रतिकूल लोगों की सभा, ये सभी अग्नि न होते हुए भी शरीर को जला देते है।

15: नदी के किनारे खड़े वृक्ष, दूसरे के घर में जाने या रहने वाली स्त्री, मंत्री के बिना राजा, यह सब शीघ्र ही नष्ट हो जाते है। इसमें किसी भी प्रकार का संशय नहीं करना चाहिए।

16: ब्राह्मणों का बल विद्या है, राजाओं का बल उनकी सेना है, वेश्यो का बल उनका धन है और शूद्रों का बल सेवा-कर्म करना है।

17: वेश्या निर्धन मनुष्य को, प्रजा पराजित राजा को, पक्षी फलरहित वृक्ष को व अतिथि उस घर को, जिसमे वे आमंत्रित किए जाते है, को भोजन करने के पश्चात छोड़ देते है।

18: ब्राह्मण दक्षिणा ग्रहण करके यजमान को, शिष्य विद्याध्ययन करने के उपरांत अपने गुरु को और पशु जले हुए वन को त्याग देते है।

19: बुरा आचरण अर्थात दुराचारी के साथ रहने से, पाप दॄष्टि रखने वाले का साथ करने से तथा अशुद्ध स्थान पर रहने वाले से मित्रता करने वाला शीघ्र नष्ट हो जाता है।

20: मित्रता बराबर वालों में शोभा पाती है,नौकरी राजा की अच्छी होती है, व्यवहार में कुशल व्यापारी और घर में सुंदर स्त्री शोभा पाती है।

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