गिरिजा देवी बनारस घराने की एक प्रसिद्ध भारतीय शास्त्रीय गायिका हैं। वह शास्त्रीय और ठुमरी, कजरी, चैदी , दादरा जैसे उपशास्त्रीय संगीत की प्रख्यात गायिका थी। गिरिजा देवी को को उनके शिष्य अप्पा जी के नाम से भी पुकारा करते थे। ठुमरी गायन को परिष्कृत करने तथा इसे इसको लोकप्रिय बनाने में इनका बहुत बड़ा योगदान रहा है। आइये जानते है गिरिजा देवी के जीवन से जुड़ी अन्य जानकारियों के बारे में-
गिरिजा देवी का प्रारम्भिक जीवन-
गिरिजा देवी का जन्म प्राचीन नगरी वाराणसी(बनारस) में 8 मई 1929 में हुआ था। उनके पिता का नाम रामदेव था जोकि एक जमींदार थे साथ ही संगीत से बहुत प्रेम करते थे। उनके पिता हारमोनियम बजाया करते थे जिस कारम गिरिजा देवी को बजपन से ही संगीत का माहौल मिला। घर वालों का कहना है कि गिरिजा देवी जब 2-3 वर्ष की थी, तब यदि उन्हे रोत वक्त गाना सुनाई दे जाता था तो वह रोना बंद कर देती थी। जो उनके संगीत प्रेम को दर्शाता है। उन्होंने 5 वर्ष की उम्र में गायन व सारंगी वादक सरजू प्रसाद मिश्र से ख्याल और टप्पा गायन की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी। लेकिन उनकी आकस्मिक मृत्यु के बाद उन्होंने गुरू श्री चंद मिश्रा का शिष्यत्व ग्रहण कर उनसे संगीत की विभिन्न शैलियों में पढ़ाई की। मात्र 9 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने फिल्म ’याद रहे’ में अभिनय किया। गिरिजा का संगीत के प्रति झुकाव होने के कारण उनके पिता जी ने उनका बहुत साथ दिया। गिरिजा देवी की शादी बहुत कम उम्र में हो गयी थी 18 वर्ष की उम्र पूरा करते-करते उन्होंने एक बेटी को भी जन्म दे दिया था।
गिरिजा देवी का कैरियर-
गिरिजा देवी ने साल 1949 में ऑल इंडिया रेडियो इलाहाबाद पर गायन की सार्वजनिक शुरूआत की थी. उन दिनों शादी-शुदा स्त्रियों द्वारा मंच को साझा करना अच्छा नहीं माना जाता था। जिस कारण उन्हे अपने परिवारीजनों से बहुत विरोध का सामना भी करना पड़ा. इसके बाद उन्होंने 1951 में बिहार में अपना पहला सार्वजनिक संगीत कार्यक्रम किया. इसके बाद गिरिजा देवी की अनवरत संगीत यात्रा शुरू हुई, अब तक जारी रही। गिरिजा देवी ने स्वयं को केवल मंच-प्रदर्शन तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि संगीत के शैक्षणिक और शोध कार्यों में भी अपना योगदान किया। 80 के दशक में उन्हें कोलकाता स्थित ‘आई.टी.सी. संगीत रिसर्च एकेडमी’ ने आमंत्रित किया। यहाँ रह कर उन्होंने न केवल कई योग्य शिष्य तैयार किये, बल्कि शोध कार्य भी कराए। 90 के दशक में गिरिजा देवी ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ से भी जुड़ीं। यहाँ अनेक छात्र-छात्राओं को प्राचीन संगीत परम्परा की दीक्षा दी।
वह बनारस घराने से गाती थी एवं पूरबी आंग ठुमरी शैलियों में अपनी प्रस्तुति देती थी जिस कारण उनके कैरियर को ऊचाइंया हासिल करने में काफी मदद मिली। उनके प्रदर्शनों की सूची अर्द्ध शास्त्रीय शैलियों कजरी, चैती और होली भी शामिल है और वह ख्याल, भारतीय लोक संगीत, और टप्पा भी गाती है। संगीत और संगीतकारों के न्यू ग्रोव शब्दकोश में कहा गया है कि गिरिजा देवी अपने गायन शैली में अर्द्ध शास्त्रीय गायन बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाने के क्षेत्रीय विशेषताओं के साथ उसके शास्त्रीय प्रशिक्षण को जोड़ती है। गिरिजा देवी को ठुमरी की रानी के रूप में माना जाता है।
गायन शैली-
शास्त्रीय और उप-शास्त्रीय संगीत में निष्णात गिरिजा देवी की गायकी में ‘सेनिया’ और ‘बनारस घराने’ की अदायगी का विशिष्ट माधुर्य, अपनी पाम्परिक विशेषताओं के साथ विद्यमान है। ध्रुपद, ख़्याल, टप्पा, तराना, सदरा, ठुमरी और पारम्परिक लोक संगीत में होरी, चैती, कजरी, झूला, दादरा और भजन के अनूठे प्रदर्शनों के साथ ही उन्होंने ठुमरी के साहित्य का गहन अध्ययन और अनुसंधान भी किया है। भारतीय शास्त्रीय संगीत के समकालीन परिदृश्य में वे एकमात्र ऐसी वरिष्ठ गायिका हैं, जिन्हें पूरब अंग की गायकी के लिए विश्वव्यापी प्रतिष्ठा प्राप्त है। गिरिजा देवी ने पूरबी अंग की कलात्मक विरासत को अत्यन्त मोहक और सौष्ठवपूर्ण ढंग से उद्घाटित करने का महती काम किया है। संगीत मे उनकी सुदीर्घ साधना हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के मूल सौन्दर्य और सौन्दर्यमूलक ऐश्वर्य की पहचान को अधिक पारदर्शी भी बनाकर प्रकट करती है
गिरिजा देवी का देहांत-
ठुमरी गायन को प्रसिद्धि के मुकाम तक पहुंचाने में अहम रोल अदा करने वाली भारतीय शास्त्रीय संगीत की गायिका गिरिजा देवी ने अंतिम सांस 24 अक्टूबर 2017 को कोलकाता के बड़ला अस्पताल में ली.
गिरिजा देवी को मिलने वाले पुरस्कार –
- पद्म श्री (1972)
- पद्म भूषण (1989)
- पद्म विभूषण (2016)
- संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1977)
- संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप (2010)
- महा संगीत सम्मान पुरस्कार (2012)
- संगीत सम्मान पुरस्कार (डोवर लेन संगीत सम्मेलन)
- जीआईएमए पुरस्कार 2012 (लाइफटाइम अचीवमेंट)