Pongal essay in hindi – पोंगल’ दक्षिण भारत, मुख्य रूप से तमिलनाडु के सबसे लोकप्रिय व प्रमुख हिन्दु त्यौहारों में से एक है। पोंगल शब्द के दो अर्थ हैं। पहला यह कि इस दिन सूर्य देव को जो प्रसाद अर्पित किया जाता है वह पोंगल ( Pongal )कहलाता है। दूसरा यह कि तमिल भाषा में पोंगल का एक अन्य अर्थ निकलता है अच्छी तरह उबालना। पोंगल एक फसली त्योहार है। यह त्यौहार हर साल 14-15 जनवरी को मनाया जाता है।
पारम्परिक रूप से पोंगल सम्पन्नता को समर्पित त्यौहार है। इसमें समृद्धि लाने के लिए वर्षा, धूप तथा खेतिहर मवेशियों की आराधना की जाती है। आपको एक जानकारी देता चलूं कि यह त्योहार उत्तर भारत में मकर सक्रांति, पंजाब में लोहड़ी गुजरात तथा महाराष्ट में उत्तरायन और आन्ध्र प्रदेश, केरल तथा कर्नाटक में पोंगल के नाम से जाना जाता है।
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पोंगल का त्योहार 2019 में कब मनाया जायेगा (Pongal Festival 2019 Dates)
इस वर्ष पोंगल 15 जनवरी 2018 से शुरू होकर 18 जनवरी तक मनाया जायेगा।
पोंगल का नाम | दिनांक |
भोगी पोंगल | 15 जनवरी |
सूर्य (थाई) पोंगल | 16 जनवरी |
मट्टू पोंगल | 17 जनवरी |
तिरूवल्लूर (कान्नुम) पोंगल | 18 जनवरी |
यह त्यौहार चार दिनों के लिए मनाया जाता है। पहला दिन ‘भोगी’, दूसरा दिन ‘पोंगल’, तीसरा दिन ‘मट्टु पोंगल’ व अंतिम चौथा दिन ‘कानूम पोंगल’ के रूप में मनाया जाता है। तमिलनाडु के प्रायः सभी सरकारी संस्थानों में पोंगल के त्यौहार के अवसर पर अवकाश रहता है। आइये जान लेते हैं कि पोंगल के इन 4 दिनों में क्या होता है –
- भोगी पोंगल, पहला दिन- लोग भोगी पोंगल के रूप में पोंगल के पहले दिन का जश्न मनाते हैं जो कि भगवान इंद्र को समर्पित है। लोग इस दिन संध्या के समय अपने घरों से पुराने वस्त्र और कूडे़ को इकठ्ठा कर के आग में जलाते हैं। इसके साथ ही इस दिन भगवान इंद्र को पृथ्वी पर समृद्धि लाने और बहुत कुछ बहुतायत से फसल के इस मौसम से प्रदान करने लिए सम्मानित किया जाता है।
- सूर्य (थाई) पोंगल दूसरा दिन – पोंगल के दूसरे दिन को सूर्य (थाई) पोंगल कहते हैं। लोग इस दिन पोंगल नामक एक प्रकार की खीर बनाते हैं जो कि मिट्टी के बर्तन में नये धान और गुड से बनाई जाती है। पोंगल तैयार होने के बाद सूर्य देव की पूजा की जाती है और उन्हे भोग लगाया जाता है।
- मट्टू पोंगल, तीसरा दिन – पोंगल के तीसरे दिन को मट्टू पोंगल कहा जाता है। तमिल मान्यतानुसार मट्टू भगवान शंकर का बैल है जिसे एक भूल के कारण भगवान शंकर ने पृथ्वी पर रह कर मानव के लिए अन्न पैदा करने के लिए कहा और तब से पृथ्वी पर रह कर कृषि कार्य में मानव की सहायता कर रहा है। इस दिन किसान अपने बैलों को स्नान कराते हैं, उन्हें सजाते हैं तथा उनकी पूजा करते हैं।
- तिरूवल्लूर (कान्नुम) पोंगल, चौथा दिन – पोंगल के चौथे दिन को तिरूवल्लूर के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन घर की महिलाए सुबह स्नान करके कुछ पत्तों को हल्दी वाले पानी से धोकर उन चावल, हल्दी, गन्ने के टुकड़े सुपारी आदि रखती हैं। घर के आंगन में रंगोली बनाई जाती है। तमिलानाडु में हर आयु वर्ग की महिला इस रिवाज को निभाती। इस अवसर पर सब लोग नए कपड़े पहनते हैं और एक दूसरे के घर जाकर मिठाई बांटते हैं।
पोंगल त्योहार का इतिहास – ( Histroy of Pongal Festival in Hindi )
पोंगल त्यौहार के इतिहास( Pongal History in hindi ) की बात की जाए तो पोंगल एक दक्षिणममम भारतीय खासतौर से तमिलनाडु के लोगों का प्राचीन त्योहार है। पोंगल पर्व का प्राचीनतम विवरण 200 वर्ष ईसा पूर्व से 300 वर्ष ईसापूर्व में लिखित संगम साहित्य के ग्रंथों में प्राप्त होता है. तब इसे द्रविण शस्य उत्सव कहा जाता था.
संगम ग्रन्थों में थाई उन और थाई निरदल नामक पर्व की चर्चा है, जिसे पोंगल का प्राचीन स्वरूप बताया जाता है. दक्षिण भारत के प्राचीन शासकों, जैसे पल्लव, पांडय, चोल काल में इस दिन विशेष आयोजन, जैसे सामूहिक भोज, भूमि दान, बैलों की दौड़ (जल्लिकट्टू) आदि किये जाने के विवरण मिलते हैं.
पोंगल के मुख्य आकर्षण (Main Attraction of Pongal in Hindi)
पोंगल दक्षिण भारत में बहुत ही जोर शोर से मनाया जाता है। इस दिन बैलों की लड़ाई होती है जो कि काफी प्रसिद्ध है। रात्रि के समय लोग सामूहिक भोज का आयोजन करते हैं और एक दूसरे को मंगलमय वर्ष की शुभकामनाएं देते हैं। इस पवित्र अवसर पर लोग फसल, जीवन में प्रकाश आदि के लिए भगवान सूर्यदेव के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
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